शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

हिमाचल प्रदेश सरकार: हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भी कानून विभाग में अजीबोगरीब फैसले, यहां पढ़ें पूरी डिटेल

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Himachal Pradesh News: सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार एक बार फिर विवादों में घिरी हुई है। इस बार विवाद का केंद्र प्रदेश का कानून विभाग है। सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद नए प्रधान सचिव कानून की तैनाती की अधिसूचना जारी करने में देरी की। इसके बाद उसने विभाग के कामकाज को दो हिस्सों में बांटने का एक अभूतपूर्व फैसला लिया है। इस कदम ने विभाग में भ्रम और असंतोष की स्थिति पैदा कर दी है।

हाईकोर्ट ने 22 सितंबर को प्रधान सचिव कानून शरद कुमार लगवाल का तबादला जिला सत्र जज सोलन के रूप में कर दिया था। साथ ही, कोर्ट ने कांगड़ा के जिला सत्र जज राजीव बाली को सरकार के अधीन कर दिया ताकि उन्हें नया प्रधान सचिव कानून बनाया जा सके। लेकिन सरकार ने बाली की नियुक्ति की अधिसूचना तुरंत जारी नहीं की।

इस देरी के कारण हाईकोर्ट ने छह अक्टूबर को राजीव बाली को लीव रिजर्व पर हाईकोर्ट में ही तैनात कर दिया। रजिस्ट्रार जनरल के आदेश में कहा गया कि जब तक सरकार उन्हें प्रधान सचिव कानून नहीं बनाती, वे हाईकोर्ट में ही काम करेंगे। मुख्य सचिव के कार्यभार संभाल रहे संजय गुप्ता से जब इस बारे में पूछा गया तो 15 अक्टूबर को बाली की नियुक्ति की अधिसूचना आखिरकार जारी हुई।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। इसके कुछ ही घंटों बाद सरकार ने एक और आश्चर्यजनक अधिसूचना जारी की। इसके तहत प्रधान सचिव कानून से विधान और मत विंग का कामकाज छीन लिया गया। यह जिम्मेदारी संयुक्त सचिव कानून डॉ. विवेक ज्योति को दे दी गई। सरकार ने इस फैसले को जनहित में बताया।

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इसके महज दो दिन बाद, 18 अक्टूबर को एक और अधिसूचना आई। इसमें प्रधान सचिव कानून को केवल प्रशासनिक और मुकदमा विंग का कार्यभार सौंपा गया। शेष सभी कार्य संयुक्त सचिव कानून के पास रहेंगे। एक ही पद के कार्यों को इस तरह बांटना एक नई और अजीबोगरीब रिवायत मानी जा रही है।

हाईकोर्ट से पहले भी टकराव की है हिस्ट्री

यह पहली बार नहीं है जब सुक्खू सरकार अदालत से टकराई है। सेली हाइडल बिजली परियोजना के मामले में अदालत ने सरकार को पैसे जमा करने के आदेश दिए थे। सरकार ने आदेश मानने से इनकार कर दिया। जब हाईकोर्ट ने हिमाचल भवन की कुर्की के आदेश जारी किए, तब जाकर सरकार ने पैसे जमा कराए।

इसी तरह, रेरा के अध्यक्ष पद पर पूर्व मुख्य सचिव राम दास धीमान की नियुक्ति का मामला था। हाईकोर्ट ने धीमान की नियुक्ति की सिफारिश की थी। सरकार ने तय समय में नियुक्ति की अधिसूचना जारी नहीं की। अदालत में सरकार ने बचकाना जवाब दिया कि फाइल कहीं खो गई है। अदालत ने सरकार पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया और आखिरकार धीमान को नियुक्त करना पड़ा।

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पूर्व मुख्य सचिव सक्सेना का मामला

पूर्व मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना का मामला भी चर्चा में रहा है। सक्सेना को मुख्य सचिव पद पर छह महीने का सेवा विस्तार दिया गया। यह फैसला तब लिया गया जबकि यह मामला अदालत में लंबित था। सेवा विस्तार खत्म होने के बाद सक्सेना को बिजली बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया।

दिलचस्प बात यह है कि सक्सेना की नियुक्ति के बाद ही कार्मिक विभाग से उनका निष्ठा प्रमाणपत्र मांगा गया। नियमानुसार यह प्रमाणपत्र नियुक्ति से पहले लिया जाना चाहिए। सक्सेना आईएनएक्स मीडिया घोटाले में कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के साथ सह-आरोपी हैं। इस मामले में हाईकोर्ड का फैसला सुरक्षित है।

अब क्या होगा आगे?

कानून विभाग में हुए इन फैदों ने पूरे प्रशासनिक तंत्र में हलचल मचा दी है। बताया जा रहा है कि यह मामला अब प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नोटिस में है। दीपावली की छुट्टियों के बाद इस मामले में नई सुनवाई होने की उम्मीद है। पूरा मामला सरकार और न्यायपालिका के बीच तनाव को दर्शाता है। विशेषज्ञ सरकार के इन कदमों की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठा रहे हैं।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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