Kangra News: भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) द्वारा संचालित पौंग बांध ने हिमाचल प्रदेश की छाती पर गहरा घाव दिया है। 1961 में बने इस बांध ने 339 गांवों को पानी में डुबो दिया। करीब 91 हजार लोग विस्थापित हुए। आज भी कई परिवार पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं। बांध से निकलने वाला पानी हर साल फतेहपुर और इंदौरा में तबाही लाता है।
विस्थापन का दर्द
पौंग बांध ने प्रदेश की सबसे उपजाऊ हलदून घाटी को डुबो दिया। 28080 हेक्टेयर जमीन पर बना यह बांध आज भी स्थानीय लोगों के लिए समस्या बना हुआ है। विस्थापितों को राजस्थान में जमीन देने का वादा किया गया था। लेकिन पुनर्वास प्रक्रिया इतनी जटिल रही कि कई परिवार आज तक बस नहीं पाए।
बांध से होने वाली समस्याएं
बीबीएमबी बरसात में बांध से अतिरिक्त पानी छोड़ता है। यह पानी हर साल आसपास के इलाकों में बाढ़ लाता है। कई घर और व्यावसायिक संस्थान कीचड़ में डूब गए हैं। बिजली उत्पादन पंजाब को जाता है और पानी राजस्थान की नहरों में बह जाता है। हिमाचल को सिर्फ नुकसान और तबाही मिलती है।
मानवाधिकार आयोग तक पहुंचा मामला
अरनी यूनिवर्सिटी ने बीबीएमबी के खिलाफ मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई है। विश्वविद्यालय के चांसलर डा. विवेक सिंह ने बताया कि बांध से अचानक पानी छोड़े जाने से शैक्षणिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं। बीबीएमबी 60 साल में कोई सुरक्षात्मक उपाय नहीं कर पाया है।
स्थानीय लोगों की मांग
मंड क्षेत्र की जनता लगातार ब्यास नदी के तटीकरण की मांग कर रही है। लोग चाहते हैं कि बीबीएमबी अतिरिक्त नहर निर्माण कर पानी को नियंत्रित करे। स्थानीय लोगों का आरोप है कि मंड क्षेत्र में अवैध क्रशर उद्योग खोले गए हैं। ये उद्योग अवैध खनन करके बची-खुची जमीन को भी तबाह कर रहे हैं।
