Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश की अटल मेडिकल यूनिवर्सिटी आठ साल बाद भी अपना मुकाम हासिल नहीं कर पाई है। नेरचौक में स्थापित इस यूनिवर्सिटी को प्रदेश के मेडिकल सिस्टम का कमांड सेंटर बनना था। लेकिन राजनीतिक उथलपुथल ने इस सपने को अधूरा छोड़ दिया है। यूनिवर्सिटी अब तक अपनी वास्तविक पहचान नहीं बना पाई है।
चुनावी माहौल में हुआ था शुभारंभ
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इस यूनिवर्सिटी का शुभारंभ किया था। उस समय इसे मेडिकल शिक्षा में क्रांतिकारी कदम बताया गया। यूनिवर्सिटी का उद्देश्य नेरचौक मेडिकल कॉलेज को कैंपस कॉलेज बनाना था। सभी मेडिकल, डेंटल और पैरामेडिकल कॉलेजों को एक छत के नीचे लाना था। सत्ता परिवर्तन के बाद योजना की रफ्तार थम गई।
दो साल तक नहीं मिला स्टाफ
भाजपा सरकार के गठन के बाद दो वर्ष तक यूनिवर्सिटी के लिए कोई स्टाफ नियुक्त नहीं हुआ। कागजों में यूनिवर्सिटी जिंदा रही लेकिन जमीन पर सन्नाटा छाया रहा। वर्ष 2019 में पहले कुलपति की नियुक्ति के बाद काम शुरू हुआ। तब तक बुनियादी ढांचा तैयार करने का कीमती समय निकल चुका था। यूनिवर्सिटी अपने लक्ष्य से पीछे रह गई।
62 कॉलेज जुड़े पर योजनाएं अधूरी
वर्ष 2020 में संबद्धता प्रक्रिया शुरू हुई और अब तक 62 कॉलेज यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं। इनमें छह मेडिकल, चार डेंटल और 47 नर्सिंग कॉलेज शामिल हैं। लेकिन नेरचौक में डेंटल, बीफार्मेसी और पैरामेडिकल कॉलेज खोलने के प्रस्ताव अटके हुए हैं। न स्थायी भवन तैयार हुआ है और न ही शोध प्रयोगशालाएं मजबूत हुई हैं।
स्टाफ की कमी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव
यूनिवर्सिटी में कुल 53 पद स्वीकृत हैं जिनमें से केवल 22 पद भरे गए हैं। शेष पद रिक्त पड़े हैं। पर्याप्त फैकल्टी और आधुनिक सुविधाओं के अभाव में यूनिवर्सिटी संघर्ष कर रही है। छात्रों को उच्च स्तरीय शिक्षण और शोध सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। यूनिवर्सिटी का मूल उद्देश्य धुंधला पड़ गया है।
स्थानांतरण विवाद और राजनीतिक विवाद
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने स्वतंत्रता दिवस पर यूनिवर्सिटी को सरकाघाट स्थानांतरित करने की घोषणा की। इसके बाद से विवाद शुरू हो गया। स्थानीय विधायक इंद्र सिंह गांधी ने आत्मदाह की धमकी दी है। पूर्व मंत्री प्रकाश चौधरी ने भाजपा पर राजनीति करने का आरोप लगाया। यूनिवर्सिटी अब राजनीतिक विवादों में फंस गई है।
भूमि चिन्हित करने में आई दिक्कतें
भाजपा सरकार ने ढांगू में भूमि चिन्हित की थी लेकिन 2023 की बाढ़ में वह भूमि बह गई। इसके बाद सुंदरनगर के जड़ोल में भूमि देखी गई। भूस्खलन जोन होने के कारण वहां भी योजना सफल नहीं हो पाई। हर सरकार ने इस परियोजना से राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की। लेकिन यूनिवर्सिटी का विकास अब भी अधूरा है।
