Himachal News: हिमाचल प्रदेश के लिए भूकंप का खतरा अब पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। भारतीय मानक ब्यूरो के नए मानचित्र ने पूरे प्रदेश को उच्चतम खतरे वाले जोन में रखा है। प्रदेश के सात प्रमुख जिले अब जोन छह यानी रेड जोन में शामिल हो गए हैं। इस बदलाव से राज्य सरकार और प्रशासन की चिंता बढ़ गई है।
भारतीय मानक ब्यूरो ने अपने नए भूकंपीय मानचित्र में बड़ा बदलाव किया है। इसके अनुसार पूरा हिमालयी क्षेत्र अब जोन छह में आ गया है। हिमाचल प्रदेश के सभी सात पहाड़ी जिले इस उच्च जोखिम श्रेणी में शामिल हैं। यह जोन देश में भूकंप का सबसे संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है।
इन सात जिलों में सबसे अधिक खतरा
नए मानचित्र केअनुसार शिमला, मंडी, कांगड़ा, कुल्लू, चंबा, किन्नौर और लाहुल स्पीति जिले सबसे अधिक खतरे में हैं। पहले ये जिले जोन चार और पांच में बंटे हुए थे। अब इन सभी को एक साथ अत्यधिक संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। यह बदलाव भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप की आशंका को दर्शाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार यह बदलाव महज औपचारिक नहीं है। यह भविष्य की संभावित विनाशकारी घटनाओं की ओर इशारा करता है। हिमालय क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेटों के बीच लगातार टकराव जारी है। इससे भूगर्भ में दबाव लगातार बढ़ रहा है।
टेक्टोनिक प्लेट टकराव से बना दबाव
भूवैज्ञानिकोंका मानना है कि भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों का टकराव जारी है। इस टकराव के कारण धरती के भीतर भारी ऊर्जा जमा हो रही है। लंबे समय से बड़ा भूकंप न आने के कारण यह दबाव बढ़ता जा रहा है। यह ऊर्जा किसी भी समय विनाशकारी रूप ले सकती है।
प्रदेश में आखिरी बड़ा भूकंप 1905 में कांगड़ा में आया था। तब से अब तक यह क्षेत्र लगातार सक्रिय बना हुआ है। नए मानचित्र में यह बात स्पष्ट रूप से उजागर हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार अब यह क्षेत्र और अधिक खतरनाक हो गया है।
जल विद्युत परियोजनाओं के लिए बड़ा खतरा
यह स्थितिहिमाचल प्रदेश के लिए विशेष रूप से चिंताजनक है। प्रदेश की 90 प्रतिशत से अधिक जलविद्युत परियोजनाएं इन्हीं सात जिलों में स्थित हैं। इन परियोजनाओं पर भूकंप का सीधा खतरा मंडरा रहा है। किसी बड़े भूकंप से इन परियोजनाओं को भारी नुकसान हो सकता है।
इन जिलों में फोरलेन सड़क परियोजनाएं और सुरंगों का निर्माण भी चल रहा है। नई रेललाइन भी इसी संवेदनशील क्षेत्र से गुजरती है। ये सभी बुनियादी ढांचे अब अधिक जोखिम में हैं। भूकंप आने पर इन संरचनाओं को गंभीर क्षति पहुंच सकती है।
बढ़ रही हैं भूस्खलन की घटनाएं
इन सात जिलोंमें भूस्खलन की घटनाएं पहले से ही आम हैं। पहाड़ों पर बढ़ता निर्माण कार्य प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रहा है। कंक्रीट का बढ़ता बोझ भूगर्भीय स्थिरता को प्रभावित कर रहा है। इससे भूकंप का खतरा और गहरा गया है।
नए मानचित्र के साथ पूरे देश में भूकंप जोखिम का दायरा बढ़ा है। पहले भारत की 59 प्रतिशत भूमि को संवेदनशील माना जाता था। अब यह आंकड़ा बढ़कर 61 प्रतिशत हो गया है। इसका मतलब है कि देश की अधिक भूमि अब खतरे के दायरे में आ गई है।
देश की 75 प्रतिशत आबादी खतरे वाले क्षेत्र में
नए आकलन केअनुसार देश की 75 प्रतिशत आबादी अब सक्रिय भूकंप क्षेत्रों में रह रही है। यह एक बहुत बड़ी आबादी है। नए मानचित्र की खास बात यह है कि इसमें प्रशासनिक सीमाओं की जगह भूवैज्ञानिक आधार का उपयोग किया गया है।
इस बार जोन का निर्धारण फाल्ट लाइन के आधार पर किया गया है। इससे जोखिम का अधिक वैज्ञानिक और सटीक आकलन संभव हुआ है। इस बदलाव का सीधा असर भवन निर्माण गतिविधियों पर पड़ेगा। अब निर्माण के नियम और सख्त होंगे।
सख्त होंगे भवन निर्माण के नियम
जोन छह मेंशामिल क्षेत्रों में भवन निर्माण के नियम अत्यधिक सख्त किए जाएंगे। सक्रिय फाल्ट लाइन और नरम मिट्टी वाले इलाकों में नए निर्माण पर पूर्ण रोक लग सकती है। इससे इन क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियां प्रभावित होंगी।
हिमालयी राज्यों में अब एक समान भूकंपरोधी भवन मानक लागू किए जाने की योजना है। इसका उद्देश्य भविष्य में किसी भूकंप की स्थिति में जान-माल के नुकसान को कम करना है। नए मानकों के अनुसार भवनों को अधिक मजबूत बनाना अनिवार्य होगा।
बुनियादी ढांचे पर मंडराता खतरा
राज्य केअधिकांश बुनियादी ढांचे इन्हीं संवेदनशील जिलों में स्थित हैं। सड़कें, पुल, सुरंगें और बिजली परियोजनाएं सभी खतरे के दायरे में हैं। इन संरचनाओं के भूकंपरोधी बनाने पर अब विशेष ध्यान दिया जाएगा।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पहले ही कुछ परियोजनाओं पर सवाल उठाए हैं। बिजली महादेव रोपवे जैसी परियोजनाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई गई है। नए मानचित्र के बाद ऐसी सभी परियोजनाओं की समीक्षा की जरूरत है।
