Himachal Pradesh News: आईआईटी मंडी के प्रोफेसर डेरिक्स पी. शुक्ला का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में आई आपदा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा है। उन्होंने चेतावनी दी कि पहाड़ों पर कंकरीट का बोझ बढ़ने से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। यदि समय रहते पर्यावरण संतुलन को प्राथमिकता नहीं दी गई तो भविष्य में खतरा और गहरा सकता है।
प्रोफेसर शुक्ला के अनुसार पहले के लोग प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर चलते थे। वे पहाड़ से पत्थर, मिट्टी और लकड़ी लेकर घर बनाते थे। इससे पहाड़ का संतुलन बना रहता था। न तो ढलानों से ज्यादा छेड़छाड़ होती थी और न ही अतिरिक्त भार पड़ता था। यह टिकाऊ जीवनशैली थी।
आधुनिक निर्माण ने बिगाड़ा संतुलन। अब बाहर से भारी सामग्री लाकर पहाड़ों पर भारी इमारतें बनाई जा रही हैं। मशीनों से पहाड़ों को काटकर प्लाट बनाए जाते हैं। फिर उन पर बहुमंजिला ढांचे खड़े किए जाते हैं। यह नाजुक पहाड़ों की सहनशक्ति से बाहर है।
इसका सीधा असर भू-संतुलन पर पड़ रहा है। ढलानें कमजोर हो रही हैं और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। प्रोफेसर शुक्ला का मानना है कि मौजूदा हालात के लिए काफी हद तक इंसान खुद जिम्मेदार है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ का नतीजा अब सामने आ रहा है।
जलवायु परिवर्तन ने बढ़ाई मुश्किलें
मानवीय गतिविधियों ने पहाड़ों के जलवायु तंत्र को प्रभावित किया है। वाहनों की बढ़ती संख्या ने भी बोझ बढ़ाया है। सीमित सड़क क्षमता के कारण यह समस्या और गहरी हुई है। इससे पर्यावरणीय संतुलन पूरी तरह गड़बड़ा गया है।
मानसून के साथ-साथ पश्चिमी विक्षोभ भी अधिक सक्रिय हो गया है। इसकी वजह से वर्षा की तीव्रता और अवधि दोनों बढ़ गई हैं। प्रोफेसर शुक्ला ने आगाह किया कि इस साल सर्दियों का मौसम भी कड़ा और लंबा हो सकता है। यह बदलाव भी चिंता का एक बड़ा कारण है।
आपदा प्रबंधन पर शोध
प्रोफेसर डेरिक्स पी. शुक्ला आईआईटी मंडी में शोध समूह का नेतृत्व करते हैं। उनकी प्रयोगशाला आपदा चरम और पर्यावरण रिमोट सेंसिंग पर काम करती है। उनके शोध के प्रमुख क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग और जीआईएस शामिल हैं।
वह प्राकृतिक खतरों, खासकर हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने भूस्खलन संवेदनशीलता का मानचित्रण तैयार किया है। जंगल की आग और वनस्पति अध्ययन भी उनके शोध का हिस्सा हैं।
केंद्रीय विज्ञान मंत्रालय ने उन्हें एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। उन्हें उत्तराखंड की अलकनंदा नदी में भूस्खलन वाले स्थलों को चिह्नित करना है। इसके अलावा वह लाहुल के हिमखंडों पर भी शोध कर रहे हैं।
प्रोफेसर शुक्ला ने सड़क निर्माण के लिए एक सुझाव दिया है। उनका कहना है कि पहाड़ की कटिंग सीढ़ीनुमा तरीके से की जानी चाहिए। यह सुझाव उन्होंने विभिन्न एजेंसियों को दिया है। इससे भूस्खलन के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है।
