Himachal News: जून में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में आई भीषण आपदा के छह महीने बाद, लापता 29 लोगों में से 28 को आधिकारिक रूप से मृत घोषित कर दिया गया है। केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद सोमवार को प्रशासन ने इनके परिजनों को मृत्यु प्रमाणपत्र जारी कर दिए। इस कदम से प्रत्येक परिवार को चार-चार लाख रुपये के मुआवजे का रास्ता साफ हो गया है।
प्रमाणपत्र जिले के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के लिए जारी किए गए। थुनाग में अठारह, करसोग में एक, धर्मपुर में दो और गोहर क्षेत्र में सात लोगों के प्रमाणपत्र दिए गए। एक व्यक्ति की पहचान न हो पाने के कारण उनका प्रमाणपत्र अभी जारी नहीं किया गया है।
इस आपदा में सबसे अधिक तबाही सराज विधानसभा क्षेत्र के देजी गांव और गोहर के स्यांज क्षेत्र में हुई थी। यहां कई परिवार पूरी तरह से बर्बाद हो गए। एक छोटी बच्ची नितिका के माता-पिता और दादी बाढ़ में बह गए थे।
वहीं, पखरैर के मुकेश नाम के व्यक्ति का पूरा परिवार आपदा की चपेट में आ गया। उनके माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों सहित ग्यारह लोग लापता हो गए थे। आपदा के बाद एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमों ने लंबी तलाशी अभियान चलाया।
हफ्तों तक चले इस अभियान के बावजूद इन लोगों का कोई सुराग नहीं लग पाया। अब तक इनके परिजनों को कोई वित्तीय सहायता भी नहीं मिल पा रही थी। मृत्यु प्रमाणपत्र न होने के कारण मुआवजे की प्रक्रिया अटकी हुई थी।
इस समस्या को हल करने के लिए प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार से विशेष अनुमति मांगी थी। सरकार ने वर्ष 2013 की केदारनाथ त्रासदी में अपनाए गए दृष्टांत को आधार बनाया। उस घटना में भी लंबे समय तक लापता लोगों को मृत घोषित किया गया था।
केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद प्रशासन ने औपचारिक प्रक्रिया शुरू की। लापता लोगों की सूचना संबंधित ग्राम पंचायतों को भेजी गई। सार्वजनिक रूप से आपत्तियां आमंत्रित की गईं।
किसी भी तरह की आपत्ति न मिलने के बाद अंतिम रूप से कार्रवाई की गई। सोमवार को जिला प्रशासन ने अधिकारिक रूप से इन मृत्यु प्रमाणपत्रों को जारी कर दिया। यह कदम परिवारों के लिए कानूनी और प्रशासनिक बंदिशों को दूर करेगा।
अब इन अट्ठाईस परिवारों को कुल मिलाकर लगभग 1.12 करोड़ रुपये का मुआवजा राशि वितरित की जाएगी। यह राशि राज्य सरकार की ओर से दी जाने वाली तत्काल राहत सहायता का हिस्सा है। इससे प्रभावित परिवारों को कुछ आर्थिक सहारा मिल सकेगा।
जून के अंतिम सप्ताह में आई भारी बारिश और अचानक आई बाढ़ ने मंडी जिले में भारी तबाही मचाई थी। नदियों और नालों में उफान आ गया था। इसने कई घरों और सड़कों को नष्ट कर दिया था। कई लोग अपने घरों में ही फंस गए थे।
बचाव कार्य में स्थानीय प्रशासन को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। दुर्गम पहाड़ी इलाकों तक पहुंचना मुश्किल था। मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों ने भी राहत और बचाव कार्य में रुकावटें पैदा की थीं।
इस घटना ने हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदा प्रबंधन प्रणाली पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसी आपदाओं की आवृत्ति बढ़ रही है। विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास को इसका मुख्य कारण मानते हैं।
स्थानीय निवासी लंबे समय से बेहतर चेतावनी प्रणाली और त्वरित राहत उपायों की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसी घटनाओं में जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है। सरकार को इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
मृत्यु प्रमाणपत्र जारी होना एक दुखद औपचारिकता का अंत है। यह प्रक्रिया परिवारों को कानूनी रूप से आगे बढ़ने में मदद करेगी। वे अब बैंक खाते खोलने, बीमा दावों का निपटान करने और अन्य कानूनी कार्यवाही कर सकेंगे।
इस पूरी त्रासदी ने मंडी जिले के समुदायों को गहरा सदमा पहुंचाया है। कई गांवों में पूरे के पूरे परिवार विलुप्त हो गए हैं। सामुदायिक जीवन को पुनर्जीवित करने के लिए दीर्घकालिक पुनर्वास योजनाओं की आवश्यकता है।
सरकार ने अब तक मुआवजा वितरण पर ध्यान केंद्रित किया है। लेकिन मनोसामाजिक समर्थन और आजीविका के साधन पुनर्स्थापित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। प्रभावित लोगों को न केवल धन, बल्कि सम्मानपूर्ण जीवन जीने के अवसर चाहिए।
आपदा के बाद के छह महीनों में, कई परिवार अनिश्चितता के दर्द से गुजरे हैं। मृत्यु प्रमाणपत्र मिलने से उन्हें एक प्रकार की निश्चितता तो मिल गई है। हालांकि, यह उनके दुख को कम नहीं कर सकता।
प्रशासन का यह कदम एक सकारात्मक संकेत है। इससे पता चलता है कि सरकारें पीड़ित परिवारों की व्यथा को समझ रही हैं। आशा है कि मुआवजा राशि शीघ्र और बिना किसी देरी के परिवारों तक पहुंचेगी।
