Himachal News: हिमाचल प्रदेश सरकार ने बॉयलर वाले उद्योगों को पेटकोक इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी है। पर्यावरण विभाग ने यह स्वीकृति कुछ शर्तों के साथ प्रदान की है। यह अनुमति तब तक के लिए है जब तक उद्योगों को पाइपलाइन के जरिए गैस नहीं मिल जाती।
मुख्य सचिव संजय गुप्ता ने इस संबंध में आदेश जारी किया है। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि केवल वही पेटकोक इस्तेमाल हो सकेगा जिसमें सल्फर की मात्रा 7.5 प्रतिशत से अधिक न हो। इससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने का प्रयास किया जा रहा है।
ईको सेंसिटिव जोन में प्रतिबंध
राज्य सरकार ने पेटकोक के भंडारण पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं। इकोलॉजिकल सेंसेटिव जोन में स्थित उद्योग पेटकोक नहीं रख सकेंगे। राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य और बफर जोन में भी इसके भंडारण की इजाजत नहीं होगी। यह कदम पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर उठाया गया है।
हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पेटकोक इस्तेमाल करने वाले उद्योगों की लगातार निगरानी करेगा। बोर्ड को नियमित रूप से निगरानी रिपोर्ट प्रशासनिक सचिव को भेजनी होगी। इससे उद्योगों पर नजर रखना आसान होगा।
सीमेंट उद्योग को भी अनुमति
पेटकोक के इस्तेमाल की अनुमति सीमेंट उद्योग को भी दी गई है। सीमेंट निर्माता कंपनियां भी इस ईंधन का उपयोग कर सकेंगी। हालांकि उनके लिए भी सल्फर सीमा का पालन करना अनिवार्य होगा। सभी उद्योगों को प्रदूषण रोकने के पर्याप्त इंतजाम करने होंगे।
पेटकोक इस्तेमाल करने वाले हर उद्योग में एमिशन मॉनिटरिंग सिस्टम लगाना जरूरी होगा। यह सिस्टम वायु प्रदूषण के स्तर पर नजर रखेगा। उद्योगों को भंडारण की अनुमति नहीं मिलेगी, केवल इस्तेमाल की इजाजत होगी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद की कार्रवाई
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पहले ही आदेश जारी किए थे। कोर्ट के निर्देशों के बाद ही राज्य सरकार ने यह अनुमति दी है। इससे पहले उद्योगों को पेटकोक इस्तेमाल करने में कानूनी अड़चनें आ रही थीं।
पेट्रोलियम कोक कच्चे तेल के शोधन से प्राप्त होने वाला ठोस उत्पाद है। इसका उपयोग मुख्य रूप से ऊर्जा उत्पादन और औद्योगिक प्रक्रियाओं में किया जाता है। यह बॉयलर चलाने वाले उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण ईंधन साबित होता है।
इस निर्णय से हिमाचल प्रदेश के कई उद्योगों को राहत मिलेगी। विशेषकर वे उद्योग जो बॉयलर पर निर्भर हैं। सरकार का लक्ष्य उद्योगों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखा जा रहा है।
