Himachal News: हिमाचल प्रदेश के सेब बागवानों के लिए एक बुरी खबर सामने आई है। भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुए एक व्यापार समझौते ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। अब न्यूजीलैंड से आने वाले सेब पर लगने वाला टैक्स (आयात शुल्क) 25 फीसदी कम कर दिया गया है। केंद्र सरकार के इस फैसले से हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के बागवानों को बड़ा झटका लगा है। विदेशी सेब के सस्ता होने से अब भारतीय सेब को बाजार में कड़ी टक्कर मिलेगी।
विदेशी सेब पर 50% से घटकर 25% हुआ टैक्स
पहले भारत में विदेशी सेब पर 50 फीसदी आयात शुल्क लगता था। लेकिन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के बाद न्यूजीलैंड के सेब पर यह शुल्क सिर्फ 25 फीसदी रह जाएगा। इसका सीधा मतलब है कि भारत में न्यूजीलैंड का गाला और अन्य किस्म का सेब अब सस्ते दाम पर पहुंचेगा। हिमाचल प्रदेश के किसान संगठनों का कहना है कि यह फैसला उनकी आजीविका पर सीधा हमला है। न्यूजीलैंड से सेब का आयात 1 अप्रैल से 31 अगस्त के बीच होगा।
कीवी और नाशपाती पर भी बड़ा खतरा
यह समझौता सिर्फ सेब तक सीमित नहीं है। कीवी और नाशपाती उगाने वाले किसानों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। नए नियमों के तहत कीवी पर आयात शुल्क पूरी तरह खत्म करने का फैसला हुआ है। वहीं, नाशपाती पर भी शुल्क घटाया जाएगा। हिमाचल प्रदेश के किसान नेताओं का आरोप है कि एफटीए में स्थानीय उत्पादकों के हितों को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है। अमेरिका भी अब अपने सेब पर ऐसी ही छूट मांग रहा है।
दोगुना हो जाएगा सेब का आयात
आंकड़ों पर नजर डालें तो न्यूजीलैंड में सेब की पैदावार भारत से बहुत ज्यादा है। वहां एक हेक्टेयर में औसतन 53.6 टन सेब पैदा होता है, जबकि भारत में यह औसत सिर्फ 9.2 टन है। समझौते के तहत पहले 5 साल में न्यूजीलैंड को 32,500 टन सेब पर टैक्स छूट मिलेगी। छठे साल यह कोटा बढ़ाकर 45,000 टन कर दिया जाएगा। सस्ता और ज्यादा विदेशी सेब आने से हिमाचल प्रदेश की बागवानी पर बुरा असर पड़ेगा।
केंद्र के फैसले पर भड़के बागवानी मंत्री
राज्य के बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने केंद्र सरकार के इस कदम को किसान विरोधी बताया है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के प्रति केंद्र का रवैया हमेशा नकारात्मक रहा है। उन्होंने कहा कि आयात शुल्क घटने से हमारे बागवान बर्बाद हो जाएंगे। संयुक्त किसान मंच के हरीश चौहान और सेब उत्पादक संघ के संजय चौहान ने भी इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि लागत बढ़ने से बागवान पहले ही परेशान हैं, अब यह फैसला उन्हें कर्ज में डुबो देगा।
