शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

हिमाचल प्रदेश: 54 साल बाद फिर जागेगा देवता नागेश्वर महाराज का शांत महायज्ञ, लाखों श्रद्धालु उमड़ेंगे

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Himachal News: हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले की जुब्बल तहसील में स्थित झड़ग गांव में 4 से 6 दिसंबर तक देवता साहिब नागेश्वर महाराज का शांत महायज्ञ होने जा रहा है। यह महायज्ञ पूरे 54 वर्ष बाद हो रहा है। पिछला महायज्ञ 1971 में हुआ था। लाखों श्रद्धालु देव दरबार में पहुंचेंगे। यह आयोजन देवता की शक्ति को और मजबूत करने के लिए किया जाता है।

स्थानीय निवासी और शिक्षक कैलाश शर्मा ने बताया कि शांत महायज्ञ देवता की सशक्ति को बढ़ाने का विशेष अनुष्ठान है। इससे देवता अपनी प्रजा की रक्षा और शांति बनाए रखने में अधिक सक्षम होते हैं। हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है। यहां हिमालय की गोद में सैकड़ों देवी-देवता विराजमान हैं। हर देवता की अपनी प्रजा और क्षेत्र होता है।

कब और कहां हो रहा है महायज्ञ

झड़ग गांव जुब्बल-कोटखाई क्षेत्र का प्रसिद्ध गांव है। यह प्राचीन बुशहर रियासत का महत्वपूर्ण हिस्सा था। राजा के खास लोगों का गांव माना जाता था। अब यह शिमला जिले में आता है। महायज्ञ 4 दिसंबर से शुरू होकर 6 दिसंबर तक चलेगा। तीन दिन तक चलने वाले इस आयोजन में दूर-दूर से श्रद्धालु आएंगे। पूरे क्षेत्र में उत्सव का माहौल है।

देवता नागेश्वर महाराज की उत्पत्ति

कैलाश शर्मा के अनुसार देवता नागेश्वर महाराज की उत्पत्ति बराल क्षेत्र के धराट नामक स्थान पर हुई थी। पहले झड़ग कटेड़ा में मंदिर बनाया गया। मूर्ति वहां स्थापित की गई। कुछ वर्ष बाद मंदिर में आग लग गई। सब कुछ जलकर राख हो गया। इसके बाद पुजारियों के गांव में नया मंदिर बनाया गया। अब वहीं देवता विराजमान हैं।

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कौन है देवता की प्रजा

नागेश्वर महाराज की प्रजा शीली और तावली के नाम से जानी जाती है। इसमें बराल, झड़ग और मंढोल गांव शामिल हैं। अन्य देवताओं की तरह ये आक्रामक नहीं हैं। इन्हें शांतिप्रिय देवता माना जाता है। इनकी पालकी में सबसे ऊपर काली मां की मूर्ति रहती है। इसलिए इन्हें कालीपुत्र भी कहते हैं। पालकी में भौड़ बराल, ब्रह्म और असुर जैसे अन्य देवताओं की मूर्तियां भी होती हैं।

हिमाचल प्रदेश में देव संस्कृति बहुत गहरी है। हर गांव का अपना देवता होता है। ये देवता जागर और महायज्ञ के माध्यम से अपनी शक्ति दिखाते हैं। 54 साल बाद हो रहा यह महायज्ञ क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक है। लोग इसे देवता का विशेष आशीर्वाद मान रहे हैं।

शिमला जिले के दूरस्थ इलाकों में भी इसकी चर्चा जोरों पर है। जुब्बल-कोटखाई रोड पर वाहनों की संख्या बढ़ गई है। प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। मौसम विभाग ने भी इन दिनों मौसम साफ रहने की संभावना जताई है। इससे श्रद्धालुओं को राहत मिलेगी।

कैलाश शर्मा राजकीय प्राथमिक पाठशाला बड़श कुफ्टाधार में मुख्याध्यापक हैं। वे कहते हैं कि हिमालय में भगवान शिव के साथ-साथ उनके विभिन्न रूप भी निवास करते हैं। नागेश्वर महाराज भी उन्हीं का एक स्वरूप हैं। यह महायज्ञ प्रजा को एकजुट करने का बड़ा अवसर है।

पुराने लोग बताते हैं कि 1971 का महायज्ञ भी भव्य था। उस समय पूरे क्षेत्र से लोग आए थे। अब 54 साल बाद फिर वही नजारा दिखेगा। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक उत्साहित हैं। कई लोग पहले से ही तैयारी में जुटे हैं।

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हिमाचल प्रदेश में ऐसे महायज्ञ दुर्लभ होते हैं। ज्यादातर 30-40 साल में एक बार होते हैं। लेकिन नागेश्वर महाराज का यह आयोजन सबसे लंबे अंतराल के बाद हो रहा है। इससे इसकी महत्ता और बढ़ गई है। लोग इसे चमत्कारी मान रहे हैं।

ग्राम पंचायत और मंदिर समिति ने सभी व्यवस्थाएं पूरी कर ली हैं। पानी, बिजली और रहने की व्यवस्था की गई है। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष इंतजाम हैं। पार्किंग की भी उचित जगह बनाई गई है।

यह आयोजन सिर्फ धार्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक भी है। लोक नृत्य और गीतों का कार्यक्रम होगा। स्थानीय कलाकार अपनी कला दिखाएंगे। इससे हिमाचल की समृद्ध परंपरा एक बार फिर सामने आएगी। लोग दूर-दूर से इसे देखने आएंगे।

झड़ग गांव की ऊंची पहाड़ियों से पूरा क्षेत्र दिखता है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अपने आप में अनूठा है। महायज्ञ के दौरान यह नजारा और खूबसूरत हो जाएगा। सर्दी के मौसम में भी लोग गर्मजोशी से शामिल होंगे।

देवता नागेश्वर महाराज का दरबार हमेशा श्रद्धालुओं से भरा रहता है। लेकिन महायज्ञ के दौरान यह संख्या कई गुना बढ़ जाएगी। प्रशासन और स्थानीय लोग मिलकर इसे यादगार बनाना चाहते हैं। तीन दिन तक चलने वाला यह पर्व क्षेत्र की शांति और समृद्धि का प्रतीक बनेगा।

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