Shimla News: हिमाचल प्रदेश के सरकारी विभागों, बोर्डों और निगमों में लगभग 40,000 आउटसोर्स कर्मचारी लंबे समय से अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता की स्थिति में कार्यरत हैं। ये कर्मचारी नियमित कर्मचारियों के समान ही जिम्मेदारियां निभाते हैं, लेकिन उन्हें वेतन और अन्य सुविधाओं में भारी असमानता का सामना करना पड़ता है। वर्ष 2003 से शुरू हुई आउटसोर्स नियुक्तियों की प्रक्रिया ने कर्मचारियों के सामने रोजगार की सुरक्षा का गंभीर संकट खड़ा कर दिया है।
शिक्षा, जलशक्ति, लोक निर्माण और बिजली बोर्ड जैसे प्रमुख विभागों में इन कर्मचारियों की संख्या सबसे अधिक है। इन्हें न केवल कम वेतन मिलता है, बल्कि छुट्टियों जैसी बुनियादी सुविधाएं भी सीमित मात्रा में दी जाती हैं। महंगाई के इस दौर में मात्र 10,000 से 20,000 रुपये के वेतन पर गुजारा करना इनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
कर्मचारी लगातार अपनी मांगों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं। उनकी प्रमुख मांग है कि राज्य सरकार एक स्थायी नीति बनाकर उन्हें उनके वर्तमान पदों पर ही नियमित करे। इससे न केवल उनके भविष्य को सुरक्षा मिलेगी, बल्कि उन्हें समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार भी प्राप्त हो सकेगा।
राजनीतिक दलों ने समय-समय पर इन कर्मचारियों के मुद्दे को उठाया है और समाधान का आश्वासन दिया है। हालांकि, अब तक केवल बजट में वेतन में मामूली वृद्धि करके ही स्थिति को संभालने का प्रयास किया गया है। नियमितीकरण की दिशा में शुरू हुई कवायद अभी तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में बागवानी विभाग में सोसायटी के तहत कार्यरत कर्मचारियों को नियमित करने का एक अहम फैसला सुनाया है। इस न्यायिक आदेश ने अन्य विभागों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों में एक नई उम्मीद जगाई है। उन्हें उम्मीद है कि सरकार अब सभी विभागों के कर्मचारियों के लिए इसी तर्ज पर नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू करेगी।
आउटसोर्स कर्मचारी यूनियन के पूर्व अध्यक्ष शैलेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि सरकारी विभागों में कार्यरत सभी प्रकार के कर्मचारी एक समान कार्य करते हैं। ऐसे में आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ भेदभाव उचित नहीं है। उन्होंने सरकार से सभी आउटसोर्स कर्मचारियों को नियमित करने की मांग की है।
अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष त्रिलोक ठाकुर का मानना है कि सरकार को एक स्थायी नीति बनाकर इन कर्मचारियों को नियमित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्मचारी लंबे समय से सेवाएं दे रहे हैं और उनके मामले को प्राथमिकता के साथ उठाया जाएगा। इससे कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होगी।
अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदीप ठाकुर गुट ने भी उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि बागवानी विभाग के कर्मचारियों की तरह ही अन्य आउटसोर्स कर्मचारियों को भी नियमित किया जाना चाहिए। इससे कर्मचारियों के लंबे समय से लंबित मुद्दे का समाधान हो सकेगा।
वर्ष 2016 और 2017 में सबसे अधिक संख्या में आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति की गई थी। तब से लेकर आज तक इन कर्मचारियों की स्थिति में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ है। नौकरी की असुरक्षा और वित्तीिक अनिश्चितता ने इनके जीवन को प्रभावित किया है। सरकार के सामने यह एक बड़ी सामाजिक और प्रशासनिक चुनौती बनी हुई है।
कर्मचारी संगठनों का मानना है कि नियमितीकरण से सरकार को भी फायदा होगा। इससे कार्यक्षमता में वृद्धि होगी और कर्मचारियों का मनोबल बढ़ेगा। एक स्पष्ट नीति के अभाव में कर्मचारियों का असंतोष लगातार बढ़ रहा है। इस मुद्दे का शीघ्र और न्यायसंगत समाधान सभी के हित में होगा।
