Himachal News: हिमाचल प्रदेश में करीब 28 चिकित्सा अधिकारियों ने नियुक्ति पत्र मिलने के बाद भी पदभार नहीं संभाला है। यह पहली बार है जब इतनी बड़ी संख्या में डॉक्टरों ने नियुक्ति के बाद पद संभालने से इनकार किया है। कम वेतन और कठिन तैनाती की शर्तें इसका प्रमुख कारण बताई जा रही हैं।
प्रदेश सरकार ने पदभार न संभालने वाले प्रशिक्षु चिकित्सा अधिकारियों की जानकारी स्वास्थ्य निदेशालय से मांगी है। इसका उद्देश्य लोकसेवा आयोग की प्रतीक्षा सूची से नए चिकित्सकों की नियुक्ति करना है। स्वास्थ्य विभाग ने 190 पद भरने का प्रस्ताव भेजा था।
वेतन में बड़ा अंतर
हिमाचल प्रदेश में प्रशिक्षु चिकित्सा अधिकारियों को 33,600 रुपये मासिक वेतन दिया जा रहा है। ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में पांच हजार से 25 हजार रुपये तक की प्रोत्साहन राशि मिलती है। वहीं पड़ोसी राज्यों में प्रारंभिक वेतन 60,000 से 80,000 रुपये मासिक है।
हिमाचल प्रदेश चिकित्सा अधिकारी संघ के अध्यक्ष डॉ राजेश राणा ने वेतन बढ़ाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि दुर्गम क्षेत्रों में कार्यरत चिकित्सकों को कम से कम 60,000 रुपये मासिक वेतन मिलना चाहिए। क्षेत्र आधारित प्रोत्साहन राशि भी दी जानी चाहिए।
दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती
अधिकांश नियुक्तियां चंबा, लाहुल-स्पीति, किन्नौर और सिरमौर जैसे दुर्गम इलाकों में की जा रही हैं। इन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। प्रशिक्षु अवधि दो वर्ष निर्धारित की गई है जिसके बाद ही नियमित नियुक्ति का प्रावधान है।
स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारियों की कमी के कारण चिकित्सकों को 24 घंटे की ड्यूटी देनी पड़ रही है। भत्ता, ग्रेड पे और पदोन्नति जैसे लाभ उपलब्ध नहीं हैं। सेवा शर्तों में सुधार की मांग लगातार उठ रही है।
सरकार की प्रतिक्रिया
स्वास्थ्य सचिव एम सुधा देवी ने बताया कि प्रशिक्षु चिकित्सा अधिकारियों की नियुक्ति नई नीति के तहत की जा रही है। दुर्गम क्षेत्रों के लिए प्रोत्साहन राशि का प्रावधान किया गया है। पदभार न संभालने वाले चिकित्सकों का डाटा एकत्र किया जा रहा है।
प्रतीक्षा सूची से रिक्त पदों को भरने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है। स्वास्थ्य सेवाओं पर इस स्थिति का प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाएं प्रभावित हो रही हैं।
चिकित्सा अधिकारियों की कमी से स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं। मरीजों को उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है। सरकार को इस समस्या का त्वरित समाधान निकालना होगा।
