Himachal News: हिमाचल प्रदेश में कश्मीरी छात्रों और शॉल बेचने वालों की सुरक्षा को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। जम्मू-कश्मीर छात्र संघ (जेकेएसए) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सोमवार को एक पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने हिमाचल में कश्मीरियों को मिल रही धमकियों, उत्पीड़न और हमलों पर तुरंत कार्रवाई की मांग की है। संघ ने अमित शाह से अपील की है कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करें, क्योंकि वहां हालात लगातार चिंताजनक बने हुए हैं।
साल भर में 18 बार हुआ कश्मीरी व्यापारियों पर हमला
छात्र संघ ने अमित शाह को लिखे पत्र में चौंकाने वाले आंकड़े दिए हैं। संघ के राष्ट्रीय संयोजक नासिर खुएहामी के अनुसार, इस साल केवल हिमाचल प्रदेश में कश्मीरी शॉल विक्रेताओं पर हमले और धमकी की कम से कम 18 घटनाएं दर्ज हुई हैं। सबसे दुखद बात यह है कि पुलिस कार्रवाई में काफी देरी होती है। कई मामलों में एफआईआर दर्ज नहीं की जाती और न ही आरोपियों की गिरफ्तारी होती है। यह लापरवाही हजारों कश्मीरी विक्रेताओं की सुरक्षा को खतरे में डाल रही है।
डर के कारण हिमाचल छोड़ने को मजबूर लोग
इन घटनाओं का असर कश्मीरी समाज पर गहरा पड़ा है। कई छात्र और व्यापारी लगातार डर और मानसिक तनाव में जी रहे हैं। संघ ने बताया कि हालात इतने खराब हो गए हैं कि कई लोगों को हिमाचल प्रदेश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। इससे उनकी पढ़ाई बीच में छूट रही है और रोजी-रोटी का नुकसान हो रहा है। संघ ने अमित शाह को बताया कि यह केवल प्रशासन की कमी नहीं है, बल्कि कश्मीरी नागरिकों की सुरक्षा के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भी है।
CM सुक्खू से रिपोर्ट मांगने की अपील
पत्र में अमित शाह से अनुरोध किया गया है कि वे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से जवाब मांगें। संघ चाहता है कि गृह मंत्रालय राज्य सरकार से पिछले एक साल की घटनाओं पर विस्तृत रिपोर्ट ले। इस रिपोर्ट में एफआईआर की स्थिति, गिरफ्तारियां और सुरक्षा के उपायों की जानकारी होनी चाहिए। खुएहामी ने कहा कि कश्मीरी व्यापारियों को निशाना बनाना देश की एकता को तोड़ने जैसा है।
केंद्र सरकार से न्याय की उम्मीद
संगठन ने उम्मीद जताई है कि अमित शाह और उनका मंत्रालय इस मामले में निर्णायक कदम उठाएगा। केंद्र के हस्तक्षेप से पीड़ित परिवारों में विश्वास लौटेगा। संघ का मानना है कि समय पर की गई कार्रवाई समाज को बांटने वाली ताकतों को रोकने में मदद करेगी। यह कदम हर नागरिक के संवैधानिक अधिकारों और गरिमा की रक्षा के लिए बहुत जरूरी है।
