शनिवार, दिसम्बर 20, 2025

हिमाचल हाई कोर्ट: बागबानी विभाग के प्रधान सचिव पर न्यायिक आदेश न मानने पर 5 लाख रुपये का जुर्माना

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Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने बागबानी विभाग के प्रधान सचिव पर भारी जुर्माना लगाया है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने अवमानना याचिका की सुनवाई में यह आदेश दिया। न्यायालय ने न्यायिक आदेश का पालन न करने पर पांच लाख रुपये की जुर्माना राशि तय की है।

कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि यह राशि सभी जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली जाए। प्रधान सचिव को पहले यह राशि जमा करने का आदेश मिला है। बाद में सभी दोषी अधिकारी और कर्मचारी मिलकर इसकी भरपाई करेंगे।

मामले की पृष्ठभूमि और न्यायिक आदेश

यह मामला गेजम राम नामक एक कर्मचारी से जुड़ा है। तत्कालीन प्रशासनिक प्राधिकरण ने 31 मार्च 2016 को उसके पक्ष में आदेश दिया था। प्राधिकरण ने उसे वर्ष 2002 से नियमित करने का निर्देश जारी किया था।

कोर्ट ने रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद एक विसंगति पाई। विभाग ने कर्मचारी को 2006 से नियमितीकरण का लाभ तो दे दिया। लेकिन 2002 से नियमित करने का न्यायिक आदेश लागू नहीं किया गया।

कोर्ट की तीखी प्रतिक्रिया और तर्क

न्यायालय ने इस देरी को गंभीर माना। न्यायाधीश ने कहा कि इतने वर्षों तक आदेश का पालन न करना स्पष्ट अवमानना है। यह जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही दर्शाता है।

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कोर्ट ने माना कि न्यायिक आदेश की अवहेलना जानबूझकर की गई। इससे न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंची है। ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई आवश्यक हो जाती है।

जुर्माने की वसूली की प्रक्रिया

हाई कोर्ट ने जुर्माने की वसूली की स्पष्ट प्रक्रिया बताई। प्रधान सचिव को पहले पूरी राशि जमा करनी होगी। इसके बाद एक आंतरिक जांच की जाएगी। इस जांच में सभी दोषी पाए जाने वाले लोगों की पहचान होगी।

जांच पूरी होने के बाद सभी जिम्मेदार व्यक्ति इस राशि को आपस में साझा करेंगे। इस तरह अंततः जुर्माने का वित्तीय बोझ सभी दोषियों पर समान रूप से पड़ेगा। यह प्रक्रिया भविष्य में ऐसी लापरवाही रोकने का संदेश देती है।

नियमितीकरण में हुई देरी का असर

कर्मचारी गेजम राम को इस देरी से आर्थिक नुकसान हुआ है। वर्ष 2002 के बजाय 2006 से नियमितीकरण मिलने से वेतन और अन्य लाभ प्रभावित हुए। चार वर्ष की इस देरी ने उसके सेवा काल और पेंशन को भी प्रभावित किया है।

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न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक आदेशों का शीघ्र पालन जरूरी है। देरी से न्याय की अवधारणा ही खंडित होती है। सरकारी विभागों को इस मामले से सबक लेना चाहिए।

अवमानना कार्यवाही का कानूनी पहलू

भारतीय न्याय प्रणाली में अवमानना कार्यवाही एक गंभीर मामला है। न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करने पर यह कार्रवाई होती है। इसका उद्देश्य न्यायपालिका के प्राधिकार की रक्षा करना है।

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने इस मामले में संवैधानिक दायित्वों का पालन किया है। न्यायिक आदेशों की अनदेखी करने वालों के लिए यह एक चेतावनी है। सभी सरकारी विभागों को न्यायालय के आदेशों का सम्मान करना चाहिए।

प्रशासनिक जवाबदेही का मुद्दा

यह मामला प्रशासनिक जवाबदेही के महत्व को रेखांकित करता है। सरकारी अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे न्यायिक आदेशों का पालन करें। लापरवाही या जानबूझकर उल्लंघन गंभीर परिणाम ला सकता है।

हाई कोर्ट के इस फैसले से अन्य विभागों को भी सतर्क रहने की जरूरत है। न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी नागरिकों के अधिकारों का हनन है। प्रशासनिक तंत्र को अधिक कुशल और जवाबदेह बनने की आवश्यकता है।

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