Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने जंगलों के बीच बसे गांवों को बाहर निकालने संबंधी जनहित याचिका पर केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया। अदालत ने इस मुद्दे पर व्यापक नीति बनाने का सुझाव दिया।
कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ हिमाचल प्रदेश तक सीमित मुद्दा नहीं है। यह एक राष्ट्रीय समस्या बन चुका है। जंगल की जमीन के अंदर मौजूद निजी जमीनों पर अवैध कब्जे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इससे वन संरक्षण और प्रबंधन प्रभावित हो रहा है।
वन भूमि पर अवैध कब्जे की समस्या
अदालत ने पाया कि निजी भूमि मालिक धीरे-धीरे वन भूमि पर कब्जा कर रहे हैं। वे इसे अपनी सुविधा के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे जंगलों का रखरखाव बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। वन विभाग भी इन भूमियों को ठीक से प्रबंधित नहीं कर पा रहा है।
यह समस्या वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण संतुलन के लिए खतरा बन रही है। जंगलों में लगने वाली आग के मामले भी बढ़ रहे हैं। अदालत ने कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर काम करना होगा।
जमीन आदान-प्रदान की संभावना
हाईकोर्ट ने जंगलों के अंदर स्थित जमीन के आदान-प्रदान का सुझाव दिया। इसके तहत निजी भूमि मालिकों को जंगल की सीमा पर बसाया जा सकता है। इससे हरियाली और निजी हितों के बीच संतुलन बनाया जा सकेगा। जमीन के टुकड़ों को एक साथ करने का सिद्धांत भी लागू होगा।
अदालत ने कहा कि इस तरह की नीति से वन संरक्षण और मानवीय हितों में समन्वय स्थापित होगा। जंगलों के बीच बसे गांवों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जा सकेगा। इससे वन्यजीवों और मानव बस्तियों के बीच संघर्ष कम होगा।
राष्ट्रीय स्तर पर नीति की आवश्यकता
हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर की नीति बनाने की जरूरत है। केवल हिमाचल प्रदेश तक सीमित रहने से समस्या का समाधान नहीं होगा। देश के अन्य राज्यों में भी ऐसी ही समस्याएं मौजूद हैं। एक समान नीति से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार को उपयोगी नीति बनाने पर विचार करने के आदेश दिए। नई जनहित याचिका पंजीकृत करने के भी आदेश पारित किए गए। इससे मामले में और सुनवाई हो सकेगी। सभी पक्षों को अपनी बात रखने का मौका मिलेगा।
वन संरक्षण और मानव हितों में संतुलन
अदालत ने स्पष्ट किया कि वन संरक्षण और मानव हितों के बीच संतुलन जरूरी है। निजी भूमि मालिकों के हितों की अनदेखी नहीं की जा सकती। साथ ही वन संपदा के संरक्षण की भी जरूरत है। एक समन्वित दृष्टिकोण से ही दोनों उद्देश्य पूरे हो सकते हैं।
जंगलों में रहने वाले लोगों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी। उन्हें जंगलों से बाहर सुरक्षित स्थानों पर बसाना होगा। इसके लिए उचित मुआवजा और सुविधाएं प्रदान करनी होंगी। तभी इस जटिल समस्या का स्थायी समाधान संभव हो पाएगा।
