Himachal News: हिमाचल प्रदेश में खनन पट्टों को 50 साल के लिए लीज पर देने के मामले में हिमाचल हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने राज्य सरकार और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। इसके अलावा, एक अन्य मामले में कोर्ट ने एम्स बिलासपुर के कर्मचारी को इंटरव्यू में शामिल होने की अनुमति देकर राहत दी है।
खनन अधिनियम के संशोधन को चुनौती
न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश रमेश वर्मा की खंडपीठ ने इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ता आत्मा राम ने खान एवं खनिज अधिनियम 1957 की धारा 8 ए(3) को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि 2015 के संशोधन के कारण कई पट्टा धारकों को 50 साल की लीज का लाभ नहीं मिल पा रहा है। यह नियम उन लोगों को रोकता है जिनकी लीज 12 जनवरी 2015 से पहले रिन्यू नहीं हो पाई थी।
नियमों को बताया भेदभावपूर्ण
याचिकाकर्ता ने अदालत में तर्क दिया कि यह संशोधन मनमाना और भेदभावपूर्ण है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है। याचिका में 1986 की उस अधिसूचना को भी चुनौती दी गई है जिसमें सिरमौर जिले को खनन के लिए आरक्षित किया गया था। हिमाचल हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अगली सुनवाई 10 मार्च तय की है।
एम्स कर्मचारी को मिली राहत
एक अन्य आदेश में न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने एम्स बिलासपुर के डिप्टी डायरेक्टर के आदेश पर रोक लगा दी है। एम्स ने अपनी एक असिस्टेंट प्रोफेसर को प्रोबेशन अवधि के दौरान बाहरी पद के लिए एनओसी देने से मना कर दिया था। अदालत ने उन्हें अंतरिम राहत देते हुए दूसरे संस्थान में इंटरव्यू देने की अनुमति दे दी है।
एनओसी पर विवाद
याचिकाकर्ता डॉक्टर ने बताया कि एम्स प्रशासन ने उन्हें अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) जारी नहीं किया था। एम्स का तर्क था कि चयन होने पर उन्हें पुराना पद छोड़ना होगा और पिछले सेवा लाभ नहीं मिलेंगे। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि संस्थान को आवेदन पर कोई आपत्ति नहीं थी, केवल शर्तें थीं। हिमाचल हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता का अंतिम चयन इस याचिका के फैसले पर निर्भर करेगा। इस मामले की अगली सुनवाई 9 दिसंबर को होगी।
