Himachal News: हिमाचल प्रदेश सरकार के एक ताजा फैसले ने प्रदेश के दिव्यांग समुदाय में नाराजगी फैला दी है। 27 अक्टूबर को जारी एक अधिसूचना के अनुसार, अब दिव्यांगजनों को बसों में मुफ्त यात्रा का लाभ लेने के लिए एक विशेष ‘हिम बस कार्ड’ बनवाना अनिवार्य कर दिया गया है। इस निर्णय का दिव्यांग संगठनों और हिमाचल प्रदेश व्हीलचेयर क्रिकेट टीम ने जोरदार विरोध किया है।
हमीरपुर के एक दिव्यांग प्रतिनिधिमंडल ने इस मामले में उपायुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को एक ज्ञापन भेजा है। उनका कहना है कि यह कदम दिव्यांगजनों पर अनावश्यक आर्थिक और प्रशासनिक बोझ डालता है। इससे पहले से मौजूद केंद्र सरकार के यूनिक डिसेबिलिटी आईडी कार्ड की उपयोगिता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
जिला दिव्यांग समीक्षा समिति के सदस्य राजन कुमार ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार द्वारा जारी यूडीआईडी पहले से ही पूरे देश में एक मान्यता प्राप्त एकीकृत पहचान पत्र है। उन्होंने आरोप लगाया कि हिम बस कार्ड की यह अतिरिक्त अनिवार्यता न केवल दिव्यांग अधिकार अधिनियम, 2016 की भावना के खिलाफ है, बल्कि संवैधानिक समानता के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करती है।
नीति निर्माण में सलाह को नजरअंदाज करने का आरोप
दिव्यांग प्रतिनिधियों ने एक गंभीर मुद्दा उठाते हुए कहा है कि सरकार को दिव्यांगजनों से जुड़ी किसी भी नीति पर अंतिम निर्णय लेने से पहले दिव्यांग समीक्षा समितियों से विचार-विमर्श अवश्य करना चाहिए। उनका मानना है कि यदि ऐसा किया गया होता तो यह विवादास्पद निर्णय शायद न लिया जाता। इस कदम से समुदाय की भावनाओं और व्यावहारिक कठिनाइयों को नजरअंदाज किया गया प्रतीत होता है।
राजन कुमार ने मुख्यमंत्री से तत्काल इस आदेश को वापस लेने और दिव्यांगजनों को यात्रा सुविधा सिर्फ यूडीआईडी कार्ड के आधार पर प्रदान करने का आग्रह किया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने इस मामले पर शीघ्र कोई कार्रवाई नहीं की, तो दिव्यांग समुदाय अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी रास्ता अख्तियार करने को मजबूर होगा।
दिव्यांग अधिकारों पर राष्ट्रीय बहस को मिली नई दिशा
यह मामला उस समय सामने आया है जब देश का सर्वोच्च न्यायालय दिव्यांगजनों के खिलाफ व्यवस्थागत भेदभाव को दूर करने पर जोर दे रहा है । सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि दिव्यांग लोगों के साथ होने वाले शत्रुतापूर्ण भेदभाव में तत्काल सुधार की जरूरत है। अदालत ने दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के तहत संरक्षित लोगों के साथ समान व्यवहार न किए जाने पर गंभीर चिंता जताई थी।
हिमाचल प्रदेश का यह विवाद दर्शाता है कि कैसे एक प्रादेशिक नीति दिव्यांग समावेशन और सुगम्यता की राष्ट्रीय चर्चा का हिस्सा बन गई है। यह घटना सरकारी नीतियों को बनाते समय उन लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करती है जो इनसे सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं।
दिव्यांग समुदाय की बढ़ती सक्रियता का प्रतीक
हिमाचल के दिव्यांग समुदाय की यह पहल देश भर में उनकी बढ़ती सामाजिक और कानूनी जागरूकता को दर्शाती है। हाल ही में उत्तराखंड में भी दिव्यांगों ने अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री आवास के बाहर जबरदस्त प्रदर्शन किया था 。 इसी तरह, उत्तर प्रदेश के संभल में दिव्यांगों पर झूठे मुकदमे दर्ज किए जाने के आरोपों के विरोध में ज्ञापन सौंपा गया 。
ये घटनाएं एक बड़े रुझान का संकेत देती हैं, जहां दिव्यांग समुदाय निष्क्रिय रहने के बजाय अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद कर रहा है। वे न केवल सरकारी नीतियों का विरोध कर रहे हैं बल्कि उनमें अपनी सार्थक भागीदारी की मांग भी कर रहे हैं। यह सक्रियता एक परिपक्व लोकतंत्र की निशानी है।
हिम बस कार्ड विवाद ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की मान्यता प्राप्त यूडीआईडी जैसी मौजूदा व्यवस्था को ही प्रमुखता देनी चाहिए। इस मामले का अंतिम परिणाम न केवल हिमाचल बल्कि अन्य राज्यों में दिव्यांग कल्याण की नीतियों को भी प्रभावित कर सकता है। सरकार और दिव्यांग प्रतिनिधियों के बीच यह संवाद जारी है।
