Rajasthan News: राजस्थान में संपत्ति विवाद को लेकर एक अहम फैसला आया है। हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि पिता की खुद कमाई गई संपत्ति पर बेटे का कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता है। अदालत ने माना कि बालिग बेटा केवल पिता की अनुमति से ही घर में रह सकता है। अगर पिता चाहे तो वह यह अनुमति वापस ले सकता है। ऐसी स्थिति में बेटे को घर खाली करना ही होगा।
सवाई माधोपुर का है मामला
यह पूरा मामला सवाई माधोपुर जिले का है। यहाँ एक पिता और बेटे के बीच पिछले पांच साल से विवाद चल रहा था। विवाद की जड़ 90×112 फीट का एक प्लॉट था। पिता श्री खत्री ने इसे साल 1974 में नीलामी में खरीदा था। पिता ने अपने हिस्से में घर बनाया था। शादी के बाद उन्होंने बेटे को भी वहां रहने की इजाजत दे दी थी।
किराया और घर खाली करने की मांग
समय बीतने के साथ बेटे का व्यवहार बदल गया। पिता ने परेशान होकर साल 2018 में एक नोटिस भेजा। उन्होंने बेटे से घर खाली करने को कहा। साथ ही पिता ने वहां रहने के बदले 15,000 रुपये मासिक किराये की मांग की। बेटे ने इसे मानने से इनकार कर दिया। मामला निचली अदालत से होते हुए हाई कोर्ट तक पहुंच गया।
बेटे ने किया था ये दावा
बेटे ने कोर्ट में दलील दी कि यह संपत्ति हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की है। उसने दावा किया कि वह इस संपत्ति का सह-मालिक है। उसने यह भी कहा कि उसे मौखिक रूप से हिस्सा दिया गया था। हालांकि, वह कोर्ट में इसका कोई पक्का सबूत पेश नहीं कर सका। निचली अदालतों ने भी माना कि बेटा वहां सिर्फ पिता की दया पर रह रहा था।
कानूनी स्थिति और फैसला
अदालत ने कहा कि स्वयं-अर्जित संपत्ति का पूरा मालिक पिता होता है। वयस्क बेटा वहां केवल पारिवारिक प्रेम के कारण रहता है। इसे कानूनी अधिकार नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी हवाला दिया। हाई कोर्ट ने साफ किया कि अगर संपत्ति पुश्तैनी होती तो बेटे का हक़ बनता। सबूत न होने पर कोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला सुनाया।
