Bihar News: बिहार की वोटर लिस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है – क्या हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आम आदमी का मताधिकार सुरक्षित है? वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग की ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (एसआईआर) प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए, जिससे लाखों मतदाताओं के नाम सूची से हटने का खतरा पैदा हो गया है।
एक साल बाद फिर क्यों जरूरी है नई जांच?
जनवरी 2023 में ही बिहार की वोटर लिस्ट का संशोधन हो चुका है। ऐसे में अब नए सिरे से शुरू की गई इस प्रक्रिया ने आम लोगों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। सिब्बल ने सवाल किया – “जब पिछले साल ही पूरी जांच हो चुकी है, तो अब फिर से दस्तावेज मांगकर गरीब और अनपढ़ लोगों को परेशान क्यों किया जा रहा है?”
आधार कार्ड नहीं, तो फिर क्या?
सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि बूथ स्तर के अधिकारी आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण मानने से इनकार कर रहे हैं। यह उस समय हो रहा है जब देश भर में आधार को सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाता है। एक साधारण किसान या मजदूर के लिए अब क्या विकल्प बचता है?
न्यायालय की चिंता
जस्टिस सूर्यकांत ने गंभीरता से पूछा – “अगर इस प्रक्रिया में किसी का नाम गलती से काट दिया गया तो? चुनाव से पहले उसे सूची में वापस लाने का समय कैसे मिलेगा?” यह सवाल वास्तव में हर उस मतदाता की आवाज बन गया जो अपने मताधिकार को लेकर चिंतित है।
आगे की राह
अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के अगले फैसले पर टिकी हैं। क्या चुनाव आयोग इस बात का ख्याल रख पाएगा कि कोई भी योग्य मतदाता सूची से बाहर न रह जाए? यह सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया का मामला नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र की मजबूती का सवाल है।
मानवीय पहलू:
इस पूरे विवाद में सबसे दुखद पहलू यह है कि सबसे ज्यादा प्रभावित वे लोग होंगे जिनके पास संसाधनों की कमी है – वृद्ध, गरीब, अनपढ़ और वे लोग जो दस्तावेजों के चक्कर में फंसकर रह जाते हैं। क्या हमारी व्यवस्था उनकी आवाज सुन पाएगी?
