Haryana News: आईपीएस अधिकारी पूरन कुमार की आत्महत्या का मामला हरियाणा की राजनीति में तूफान ला दिया है। केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने मुख्यमंत्री नायब सैनी से मुलाकात की। इस बैठक में गंभीर आरोप लगे। अठावले के साथियों ने दावा किया कि मुख्यमंत्री सैनी वास्तविक शक्ति नहीं रखते। उन्हें महज एक ‘रबर स्टैंप’ बताया गया। यह भी कहा गया कि प्रशासन पर कुछ अधिकारियों का कठोर नियंत्रण है।
मुलाकात में मौजूद लोगों ने बताया कि मुख्यमंत्री सैनी ने खुद कहा कि वह एक छोटे से कर्मचारी को भी नहीं हटा सकते। यह बात सरकार के भीतर की शक्ति की वास्तविक तस्वीर दिखाती है। बैठक में डीजीपी और एक एसपी को निलंबित करने की मांग रखी गई। लेकिन मुख्यमंत्री के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसे तकनीकी आधार पर रोक दिया।
बैठक में मौजूद लोगों ने लगाए ये गंभीर आरोप
रिपब्लिकन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रवि कुंडली और दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री संदीप वाल्मीकि बैठक में मौजूद थे। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कई चौंकाने वाले खुलासे किए। उन्होंने साफ कहा कि मुख्यमंत्री सैनी के पास असली अधिकार नहीं हैं। राज्य का प्रशासन वरिष्ठ अधिकारी राजेश खुल्लर और डीजीपी शत्रुजीत कपूर चला रहे हैं।
संदीप वाल्मीकि ने आगे आरोप लगाया कि केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर भी वास्तविक सत्ता का हिस्सा हैं। यह तिकड़ी हरियाणा सरकार के सभी महत्वपूर्ण फैसले लेती है। मुख्यमंत्री का पद केवल औपचारिकता रह गया है। यह आरोप राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल सकते हैं।
आईपीएस मामले में निलंबन की मांग हुई थी असफल
बैठक के दौरान रामदास अठावले ने डीजीपी शत्रुजीत कपूर और पूर्व एसपी नरेंद्र बिजारणिया के तत्काल निलंबन की मांग रखी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मुख्यमंत्री सैनी ने इस मांग का समर्थन किया। लेकिन मुख्यमंत्री के चीफ प्रिंसिपल सेक्रेटरी राजेश खुल्लर ने इसे मानने से इनकार कर दिया।
खुल्लर ने कथित तौर पर निलंबन में आने वाली तकनीकी समस्याओं का हवाला दिया। इससे साफ जाहिर होता है कि नौकरशाही के पास मुख्यमंत्री से अधिक शक्ति है। यह घटना सरकार के भीतर शक्ति के संतुलन पर गंभीर सवाल खड़े करती है। जनता अब पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग कर रही है।
आईपीएस पूरन कुमार मामले में अब तक का सिलसिला
आईपीएस अधिकारी पूरन कुमार की मौत की जांच अभी भी जारी है। प्रारंभिक रिपोर्ट्स में इसे आत्महत्या बताया गया था। लेकिन परिवार और सामाजिक कार्यकर्ताओं को इसमें संदेह है। उनका मानना है कि इस मामले में हत्या की आशंका को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता।
मामले की गंभीरता को देखते हुए कई राजनीतिक दल हस्तक्षेप कर रहे हैं। दलित समुदाय के नेता न्याय की मांग कर रहे हैं। उनका आरोप है कि अधिकारी के साथ अन्याय हुआ है। इस मामले ने पुलिस विभाग के आंतरिक मामलों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग तेज हो गई है।
राजनीतिक हलकों में आरोपों की गूंज
इस बैठक और उस के बाद लगे आरोपों ने हरियाणा की राजनीति को गर्मा दिया है। विपक्षी दल सरकार पर नौकरशाहों के हाथ की कठपुतली होने का आरोप लगा रहे हैं। वे मुख्यमंत्री सैनी से इन आरोपों का जवाब देने की मांग कर रहे हैं। सत्तारूढ़ दल के भीतर भी असंतोष की खबरें आ रही हैं।
राज्य सरकार के कामकाज में पारदर्शिता की कमी एक बड़ा मुद्दा बन गया है। नागरिक स्पष्टीकरण चाहते हैं कि सत्ता की बागडोर वास्तव में किसके हाथों में है। इस घटना का प्रभाव आने वाले समय में राज्य की राजनीति पर दिखाई देगा। राजनीतिक विश्लेषक स्थिति को गंभीर मान रहे हैं।
यह पूरा मामला सरकारी तंत्र में शक्ति के वास्तविक केंद्रों पर प्रकाश डालता है। एक निर्वाचित प्रतिनिधि की शक्ति पर सवाल उठाना लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है। हरियाणा की जनता अब सरकार से स्पष्ट जवाबदेही की अपेक्षा करती है। इस मामले ने प्रशासनिक और राजनीतिक सुधारों की बहस को फिर से शुरू कर दिया है।
