Uttar Pradesh News: निर्भया गैंगरेप और हत्या केस के चारों दोषियों को फांसी देने वाले जल्लाद पवन इन दिनों आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहे हैं। मेरठ के रहने वाले पवन ने जेल प्रशासन के सामने अपनी समस्या रखी है। उनका कहना है कि मिलने वाला मानदेय परिवार चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। उन्होंने मानदेय बढ़ाने की मांग करते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ तक गुहार लगाई है।
पवन को जेल प्रशासन की तरफ से हर महीने दस हजार रुपये मानदेय के तौर पर मिलते हैं। यह रकम उनकी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में नाकाफी साबित हो रही है। उन्होंने जिला कारागार के जेल अधीक्षक वीरेश राज शर्मा को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने अपने मानदेय को बढ़ाकर पच्चीस हजार रुपये करने का अनुरोध किया है।
जेल अधीक्षक ने पवन के इस पत्र को उच्च अधिकारियों के पास भेज दिया है। अब यह मामला प्रशासन के उच्च स्तर पर विचाराधीन है। पवन की इस मांग पर अंतिम फैसला राज्य सरकार द्वारा ही लिया जाएगा। इस पूरे प्रकरण ने जल्लादों की आजीविका और मानदेय की बहस को फिर से शुरू कर दिया है।
पवन देश के उन गिने-चुने जल्लादों में शामिल हैं जिनके पास फांसी देने का व्यावहारिक अनुभव है। उन्होंने दिसंबर 2019 में तिहाड़ जेल में निर्भया के चारों दोषियों को फांसी पर चढ़ाया था। हैरानी की बात यह है कि उस घटना के बाद से देश के किसी भी जेल में किसी भी दोषी को फांसी नहीं दी गई है।
हालांकि कई मामलों में फांसी की सजा सुनाई गई है लेकिन उन पर अमल नहीं हुआ है। इसलिए पवन जैसे जल्लादों के लिए नियमित काम का अभाव है। पवन बताते हैं कि वह हर रोज मेरठ की जेल में अपनी नौकरी पर हाजिरी जरूर लगाते हैं। मगर लंबे समय से फांसी की प्रक्रिया न होने के कारण उनकी भूमिका सीमित हो गई है।
पवन की मुख्य आय का स्रोत वही मासिक मानदेय है। मौजूदा समय में महंगाई के चलते दस हजार रुपये में घर चलाना मुश्किल हो रहा है। उनका कहना है कि सरकार को इस पेशे से जुड़े लोगों की आर्थिक स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। मानदेय में बढ़ोतरी से उनकी काफी मदद हो जाएगी।
जल्लाद का पेशा दशकों पुराना है लेकिन अब इसकी प्रासंगिकता कम होती जा रही है। भारत में अब बहुत कम मामलों में फांसी की सजा दी जाती है। रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केस में ही सुप्रीम कोर्ट इस सजा को बरकरार रखता है। इस वजह से जल्लादों की नौकरी भी अनिश्चितता से घिर गई है।
पवन के अनुसार निर्भया केस के बाद उनसे चार फांसियां करवाई गई थीं। यह सभी एक ही मामले से जुड़े थे। तब से लेकर आज तक उन्होंने किसी अन्य व्यक्ति को फांसी नहीं दी है। यह स्थिति दर्शाती है कि भारत में फांसी की सजा कितनी दुर्लभ हो गई है।
मेरठ जेल प्रशासन ने इस मामले में कोई तत्काल टिप्पणी करने से इनकार किया है। अधिकारियों का कहना है कि यह एक संवेदनशील मामला है और इसपर उच्च स्तर पर विचार किया जा रहा है। पवन की मांग पर जल्द ही कोई निर्णय लिया जा सकता है।
पवन ने अपनी अपील में केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार दोनों से मदद की गुहार लगाई है। वह चाहते हैं कि सरकार उनकी आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए। ताकि वह और उनका परिवार एक सामान्य जीवन जी सकें।
यह मामला केवल एक व्यक्ति की आर्थिक समस्या तक सीमित नहीं है। यह देश की न्यायिक और जेल प्रणाली के एक विशेष पहलू को उजागर करता है। जल्लादों की भूमिका और उनकी आजीविका पर व्यापक बहस की जरूरत है। इससे संबंधित नीतियों पर पुनर्विचार की आवश्यकता हो सकती है।
