शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

हलाल मीट विवाद: NHRC ने रेलवे को भेजा नोटिस, जानिए क्या है पूरा मामला

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National News: भारतीय रेलवे के खानपान मेन्यू में केवल हलाल मीट परोसे जाने को लेकर एक बार फिर विवाद छिड़ गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को नोटिस जारी किया है। आयोग ने रेलवे से दो सप्ताह के अंदर इस बारे में अपनी कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने को कहा है। इस शिकायत में आरोप लगाया गया है कि ट्रेनों में सिर्फ हलाल मीट परोसना हिंदू और सिख यात्रियों के साथ भेदभाव है।

हलाल मीट को लेकर उठे सवालों के जवाब में भारतीय रेलवे ने स्पष्टीकरण दिया है। रेलवे का कहना है कि उसने खानपान सेवाओं के लिए हलाल सर्टिफिकेशन को अनिवार्य नहीं बनाया है। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, रेलवे और आईआरसीटीसी केवल एफएसएसएआई के खाद्य सुरक्षा मानकों और दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि रेलवे किसी विशेष धार्मिक प्रक्रिया को लागू नहीं करता है।

यह विवाद तब और बढ़ गया जब एनएचआरसी को मिली एक शिकायत में गंभीर आरोप लगाए गए। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि केवल हलाल मीट परोसने की नीति हिंदू दलित समुदायों के पारंपरिक मांस विक्रेताओं के रोजगार और आजीविका के अधिकारों को नुकसान पहुंचाती है। आयोग ने इन आरोपों को मानवाधिकारों का उल्लंघन मानते हुए तत्काल जवाब मांगा है।

हलाल और झटका मीट में क्या है अंतर

हलाल और झटका दरअसल मांस काटने के दो अलग-अलग तरीके हैं। हलाल एक अरबी शब्द है जिसका मतलब ‘जायज’ या ‘वैध’ होता है। इस्लामिक परंपरा के अनुसार, हलाल मीट प्राप्त करने के लिए जानवर की गर्दन की नसों और श्वास नली को एक ही तेज चीरे से काटा जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान एक विशेष दुआ पढ़ी जाती है और जानवर के शरीर से पूरा खून बहने दिया जाता है।

वहीं झटका मांस वह है जिसमें जानवर के गर्दन को एक ही झटके में काटकर उसका सिर अलग कर दिया जाता है। सिख परंपरा और हिंदू धर्म में बलि की प्रथा में इसी तरीके को अपनाया जाता है। माना जाता है कि इससे जानवर को तुरंत मौत आती है और कम पीड़ा होती है। यह तरीका हिंदुओं और सिखों की धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है।

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हिंदू धर्म में मांसाहार को लेकर क्या हैं नियम

हिंदू धर्म में मांसाहार को लेकर कोई एक समान और सार्वभौमिक नियम नहीं है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में इसके अलग-अलग चलन देखने को मिलते हैं। उत्तर भारत के राज्यों जैसे पंजाब और हरियाणा में अधिकतर लोग झटका मीट खाना पसंद करते हैं। यहां के कई समुदायों में धार्मिक अनुष्ठानों में भी इसी पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है।

वहीं दक्षिण भारत के राज्यों जैसे तमिलनाडु और केरल की स्थिति बिल्कुल भिन्न है। यहां बड़ी संख्या में हिंदू परिवार रेस्तरां और दुकानों से हलाल मीट खरीदते हैं। कई सामाजिक और पारिवारिक समारोहों में मुस्लिम मेहमानों की सुविधा के लिए हलाल मीट ही परोसा जाता है। इस तरह यह एक सामाजिक प्रथा का रूप ले लेता है।

धार्मिक आस्था का सवाल बना विवाद

इस पूरे विवाद का केंद्र धार्मिक आस्था और भोजन की पसंद की स्वतंत्रता का सवाल है। शिकायतकर्ता का आरोप है कि ट्रेनों में केवल हलाल मीट उपलब्ध होने से हिंदू और सिख यात्रियों को उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप भोजन नहीं मिल पाता। एनएचआरसी ने भी अपने नोटिस में इसे धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों और समानता के अधिकार के खिलाफ बताया है।

मामला सिर्फ भोजन तक सीमित नहीं है। शिकायत में यह भी दावा किया गया है कि इस नीति का हिंदू दलित समुदाय के मांस विक्रेताओं की आजीविका पर बुरा असर पड़ रहा है। उन्हें रेलवे जैसी बड़ी संस्था में व्यापार के अवसर नहीं मिल पाते। इस तरह यह विवाद धार्मिक स्वतंत्रता और आर्थिक अवसरों दोनों से जुड़ा हुआ है।

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राजनीतिक हलकों में भी चर्चा का विषय रहा है मामला

हलाल और झटका मीट का मुद्दा पहले भी राजनीतिक बहस का केंद्र रहा है। पिछले कुछ समय में कई बार राजनेताओं ने इस पर अपनी राय रखी है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने हिंदुओं से हलाल मीट का बहिष्कार करने और झटका मीट खाने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि हर समुदाय को अपने धार्मिक तरीकों का पालन करना चाहिए।

इसी तरह महाराष्ट्र के मंत्री नितेश राणे ने हिंदू मीट विक्रेताओं के लिए ‘मल्हार’ सर्टिफिकेशन शुरू करने की बात कही थी। उनका उद्देश्य मीट व्यापार में एक अलग पहचान बनाना था। हालांकि इस प्रस्ताव की विपक्षी दलों ने कड़ी आलोचना की थी। उनका आरोप था कि इस तरह के कदम से समाज में धर्म के आधार पर विभाजन पैदा होगा।

रेलवे की सफाई और आगे की राह

भारतीय रेलवे ने इन सभी आरोपों का जवाब देते हुए अपना पक्ष स्पष्ट किया है। रेलवे के अनुसार, वह केवल भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण यानी एफएसएसएआई के नियमों का पालन करता है। उसका कहना है कि उसने कभी भी हलाल सर्टिफिकेशन को अनिवार्य नहीं बनाया है। रेलवे बोर्ड द्वारा एनएचआरसी के नोटिस का जल्द ही जवाब दिए जाने की उम्मीद है।

अब पूरा ध्यान रेलवे की ओर से दी जाने वाली कार्रवाई रिपोर्ट पर टिका है। इस रिपोर्ट से स्पष्ट हो सकेगा कि क्या वास्तव में रेलवे के सप्लायर केवल हलाल मीट ही आपूर्ति करते हैं। जरूरत पड़ने पर रेलवे को अपने खानपान निर्देशों में बदलाव भी करना पड़ सकता है। यह मामला देश की धार्मिक विविधता और समावेशिता के सिद्धांत की एक महत्वपूर्ण कसौटी साबित होगा।

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