Gujarat News: गुजरात हाई कोर्ट ने गुजरात दंगे से जुड़े मामले में तीन आरोपियों को बरी कर दिया। जस्टिस गीता गोपी ने कहा कि दोषसिद्धि विश्वसनीय साक्ष्यों पर नहीं थी। सचिन पटेल, अशोक पटेल और अशोक गुप्ता ने 2006 में फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। उन्हें दंगा और आगजनी के आरोप में पांच साल की सजा मिली थी। अदालत ने कहा कि उनकी पहचान साबित नहीं हुई।
हाई कोर्ट का फैसला
जस्टिस गीता गोपी की बेंच ने सोमवार को फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि फास्ट ट्रैक कोर्ट ने साक्ष्यों का सही मूल्यांकन नहीं किया। गुजरात दंगे के इस मामले में आरोपियों की पहचान साबित नहीं हुई। न ही यह स्थापित हो सका कि वे गैरकानूनी सभा का हिस्सा थे। आगजनी और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप भी सिद्ध नहीं हुए। यह फैसला 19 साल बाद आया।
मामले का विवरण
2002 में साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी के बाद गुजरात दंगे भड़के थे। अभियोजन पक्ष ने कहा कि तीनों आरोपी 28 फरवरी को आणंद में भीड़ का हिस्सा थे। भीड़ ने दुकानों में आग लगाई और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। यह कार्रवाई बॉम्बे पुलिस अधिनियम के उल्लंघन में थी। नौ आरोपियों में से चार को दोषी ठहराया गया था। एक दोषी की 2009 में मृत्यु हो गई थी।
लंबी कानूनी लड़ाई
गुजरात दंगे के इस मामले में सचिन पटेल, अशोक पटेल और अशोक गुप्ता को 2006 में सजा मिली थी। हाई कोर्ट ने उनकी अपील स्वीकार की। अदालत ने कहा कि साक्ष्य अपर्याप्त थे। आरोपियों का गैरकानूनी सभा में शामिल होना या आगजनी में भूमिका साबित नहीं हुई। यह फैसला 2002 के सांप्रदायिक दंगों के बाद शुरू हुई लंबी कानूनी लड़ाई का हिस्सा है।
