National News: ग्रेट निकोबार द्वीप की विशाल बुनियादी ढांचा परियोजना को लेकर चिंताएं फिर से सामने आई हैं। आदिवासी समुदाय ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष को पत्र लिखकर अपनी बात रखी है। इस पत्र में परियोजना के आदिवासी जमीन और वन अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभाव की चिंता जताई गई है।
लिटिल और ग्रेट निकोबार द्वीप समूह की आदिवासी परिषद के अध्यक्ष बार्नाबास मंजू ने यह पत्र लिखा है। उन्होंने कहा कि परियोजना को लेकर पहले दर्ज की गई आपत्तियों और शिकायतों का अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। यह पत्र छह दिसंबर को आयोग को भेजा गया था।
परियोजना को लेकर क्या हैं आपत्तियां
आदिवासीपरिषद के अध्यक्ष ने एक पुरानी शिकायत का भी जिक्र किया है। यह शिकायत 21 जुलाई को केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री को भेजी गई थी। इस शिकायत में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह प्रशासन पर आरोप लगाया गया था।
प्रशासन पर आरोप है कि उसने आदिवासी समुदायों के जंगल अधिकारों के निपटान के बारे में गलत दावा किया है। मंजू ने कहा कि 2006 के वन अधिकार अधिनियम के तहत अधिकारों के निपटान का दावा किया गया। जबकि द्वीपों पर अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया शुरू भी नहीं हुई थी।
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट क्या है
ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट 81,000 करोड़रुपये की लागत वाली एक विशाल परियोजना है। यह परियोजना 166 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। इसमें 130 वर्ग किलोमीटर जंगल भूमि शामिल है। इस परियोजना में कई बड़ी परियोजनाएं शामिल हैं।
इसमें एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट बनाया जाएगा। एक एकीकृत टाउनशिप, नागरिक और सैन्य उपयोग का हवाई अड्डा भी बनेगा। 450 मेगावाट क्षमता वाला गैस और सौर ऊर्जा आधारित पावर प्लांट भी इस परियोजना का हिस्सा है। यह परियोजना द्वीप के विकास के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
आदिवासी समुदाय पर क्या प्रभाव पड़ेगा
यह परियोजनानिकोबार समुदाय की पैतृक जमीनों पर प्रभाव डालेगी। ये लोग 2004 की ग्रेट सुनामी के दौरान अपने गांवों से विस्थापित हुए थे। परियोजना विशेष रूप से कमजोर शॉम्पेन जनजाति पर भी असर डालेगी। शॉम्पेन जनजाति की संख्या केवल सैकड़ों में है।
आदिवासी परिषद ने जुलाई में केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री को स्पष्ट रूप से कहा था। उन्होंने कहा कि वे नहीं चाहते कि प्रस्तावित परियोजना उनके गांवों में बनाई जाए। न ही किसी आदिवासी आरक्षित क्षेत्र में बनाई जाए। शॉम्पेन जनजाति द्वारा उपयोग किए जाने वाले क्षेत्रों में भी न बनाई जाए।
पहले भी भेजे गए थे पत्र
आदिवासीपरिषद के अध्यक्ष के पत्र में 2022 में भेजे गए दो पत्राचारों की सूची भी दी गई है। पहला पत्र 22 अगस्त 2022 का था। इसे अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के उपराज्यपाल को संबोधित किया गया था। इसकी प्रति एनसीएसटी को भी भेजी गई थी।
यह पत्र ग्रेट निकोबार द्वीप के निकोबारी समुदाय को उनके सुनामी पूर्व गांवों में पुनर्वासित किए जाने से संबंधित था। दूसरा पत्र 22 नवंबर 2022 का था। यह ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना के लिए वन भूमि के परिवर्तन को लेकर दी गई अनापत्ति प्रमाण पत्र को वापस लेने से जुड़ा था।
आरोप लगाए गए हैं गंभीर
आदिवासीपरिषद ने कहा था कि उन्हें यह जानकारी नहीं दी गई थी। उन्हें नहीं बताया गया कि उनका आदिवासी आरक्षित क्षेत्र इस मेगा परियोजना के नक्शे में शामिल होगा। परिषद ने उस समय कहा था कि उन्हें यह जानकर गहरा झटका लगा।
परिषद ने यह भी कहा था कि यह तथ्यों को छिपाने का मामला है। इससे उनके पैतृक गांवों में वापस जाने की उनकी मांग पर सीधा असर पड़ता है। चिंगेनह के सुनामी-पूर्व गांव और अन्य गांवों के हिस्से भी परियोजना के लिए डी-नोटिफाई कर दिए जाएंगे। इससे समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंची है।
