India News: भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकिंग परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। सरकार एक और बड़े विलय की योजना बना रही है। इसके तहत चार छोटे सरकारी बैंकों को बड़े बैंकों में शामिल किया जा सकता है। इसका मकसद देश में कम लेकिन मजबूत बैंकिंग इकाइयाँ बनाना है।
इस योजना के तहत इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ महाराष्ट्र को शामिल किया जा सकता है। इन बैंकों का विलय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक या बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे बड़े संस्थानों में किया जा सकता है। इस प्रक्रिया से बैंकों की संख्या कम होगी और उनकी कार्यक्षमता बढ़ेगी।
सूत्रों के अनुसार, इस मेगा विलय योजना पर वित्त वर्ष 2026-27 में औपचारिक चर्चा होने की उम्मीद है। यह योजना कैबिनेट और प्रधानमंत्री कार्यालय के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी। इस दिशा में पहले से ही काम शुरू हो चुका है और एक प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार की जा रही है।
यह रिपोर्ट ‘रिकॉर्ड ऑफ डिस्कशन’ के रूप में तैयार की जा रही है। यह एक आंतरिक सरकारी दस्तावेज है जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों के बीच हुई चर्चाओं और सहमतियों को दर्ज किया जाता है। यह दस्तावेज भविष्य की नीति और कैबिनेट की मंजूरी का आधार बनेगा। इसलिए यह योजना अभी प्रारंभिक चरण में है।
पहले भी हो चुके हैं विलय
यह पहली बार नहीं है जब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय किया जा रहा है। वर्ष 2017 से 2020 के बीच सरकार ने ऐसा कदम उठाया था। उस दौरान दस बैंकों को मिलाकर चार बड़े बैंक बनाए गए थे। इस रणनीति के पीछे कई उद्देश्य थे।
इन उद्देश्यों में बैंकों की बैलेंस शीट को मजबूत करना शामिल था। साथ ही परिचालन लागत को कम करना और प्रशासनिक दक्षता में सुधार लाना भी लक्ष्य था। इसका एक मकसद वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में टिके रहने की क्षमता विकसित करना भी था।
फिनटेक और निजी बैंकों की चुनौती
सरकार का मानना है कि मौजूदा समय में फिनटेक प्लेटफॉर्म और निजी बैंकों का तेजी से बढ़ता प्रभाव एक बड़ी चुनौती है। इनके मुकाबले में खड़े रहने के लिए सार्वजनिक बैंकों का समेकन जरूरी हो गया है। बड़े आकार के बैंक तकनीकी निवेश के लिए बेहतर स्थिति में होंगे।
बड़े बैंक अधिक संसाधनों के साथ नई तकनीकों को अपना सकेंगे। इससे ग्राहकों को बेहतर और तेज डिजिटल सेवाएं प्रदान की जा सकेंगी। यह कदम ग्राहक अनुभव को समग्र रूप से बेहतर बनाने में मददगार साबित होगा।
इस विलय प्रक्रिया से बैंकों की ऋण देने की क्षमता भी बढ़ेगी। बड़े बैंक बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने में सक्षम होंगे। यह देश की आर्थिक विकास दर के लिए एक सकारात्मक कदम साबित हो सकता है।
भविष्य की राह
विलय की यह प्रक्रिया जटिल और कई चरणों में पूरी होगी। इसमें बोर्ड की मंजूरी, शेयरधारकों की सहमति और नियामकों की स्वीकृति शामिल है। भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी जैसे संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
विलय के बाद बैंकों के ब्रांड नाम और कर्मचारियों के एकीकरण जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा। कर्मचारी संघों की प्रतिक्रिया भी इस प्रक्रिया का एक अहम पहलू होगी। सरकार को इन सभी पक्षों के साथ समन्वय बनाकर चलना होगा।
वित्त वर्ष 2026-27 तक का समय इस पूरी प्रक्रिया को सुचारू रूप से अंजाम देने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है। इस अवधि में सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया जा सकेगा। अंतिम निर्णय सरकार द्वारा सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद ही लिया जाएगा।
