West Bengal News: प्रकृति के रक्षक कहे जाने वाले सुंदरबन के जंगल अब खुद अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। इंसान की छेड़छाड़ और बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग ने यहां के भूगोल को बदल दिया है। पिछले 30 सालों में सुंदरबन के भंगादूनी और जम्बूद्वीप जैसे दो द्वीप लगभग गायब हो चुके हैं। साल 2050 तक भारत के कई बड़े तटीय शहरों के डूबने का भी खतरा है।
समुद्र निगल गया भंगादूनी और जम्बूद्वीप
सुंदरबन के दक्षिणी छोर पर स्थित भंगादूनी द्वीप की हालत काफी खराब है। साल 1975 में यह द्वीप हरे-भरे पेड़-पौधों से भरा हुआ था। साल 1991 में इसका बड़ा हिस्सा गायब पाया गया। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्र का स्तर बढ़ा और मैन्ग्रूव की जड़ें कमजोर हो गईं। साल 2016 तक भंगादूनी का क्षेत्रफल आधा रह गया। जम्बूद्वीप का भी यही हाल है। नासा (NASA) और WWF की रिपोर्ट के मुताबिक, सुंदरबन की 3 सेमी जमीन हर साल समुद्र में समा रही है।
क्यों बढ़ रहा है समुद्र का जलस्तर?
विशेषज्ञों के मुताबिक, द्वीपों के डूबने की मुख्य वजह ग्लोबल वॉर्मिंग है। बढ़ती गर्मी से हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है। इससे समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और पानी खारा हो रहा है। खारे पानी से मिट्टी का कटाव होता है, जो मैन्ग्रूव जंगलों को नष्ट कर रहा है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) की 2023 की रिपोर्ट भी पुष्टि करती है कि पश्चिम बंगाल और गुजरात में वन क्षेत्र कम हुआ है।
मुंबई-चेन्नई समेत 113 शहरों पर आफत
खतरा केवल द्वीपों तक सीमित नहीं है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2050 तक भारत के 113 तटीय शहर जोखिम में हैं। इनमें मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, कोच्चि और विशाखापत्तनम जैसे महानगर शामिल हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण गुजरात के भावनगर में समुद्र का स्तर 87 सेमी तक बढ़ने की आशंका है। सुंदरबन के घोरामारा और सागर द्वीप पहले ही 30 वर्ग किमी जमीन खो चुके हैं।
करोड़ों लोगों की जिंदगी पर संकट
आने वाले सालों में सुंदरबन का 15 फीसदी और हिस्सा पानी में डूब सकता है। इस आपदा से सीधे तौर पर 45 लाख लोग प्रभावित होंगे। वहीं, कोच्चि में 5 लाख से ज्यादा लोगों पर असर पड़ेगा। जानकारों का कहना है कि सरकार को तुरंत मैन्ग्रूव बहाली और सी-वॉल निर्माण पर ध्यान देना होगा। जलवायु अनुकूलन नीति (NDMA 2023) को प्रभावी ढंग से लागू करके ही इस विनाश को रोका जा सकता है।
