India News: भारत में निजी स्कूलों में लैंगिक असमानता बरकरार है। 2023-24 की एक रिपोर्ट के अनुसार, निजी स्कूलों में 61% लड़के और केवल 39% लड़कियां पढ़ती हैं। पिछले दशक में यह अंतर कम नहीं हुआ। अभिभावक बेहतर शिक्षा के लिए निजी स्कूलों को चुन रहे हैं, लेकिन लड़कों को प्राथमिकता मिल रही है। सरकारी स्कूलों में लड़कियों की हिस्सेदारी 49% है, जो बेहतर स्थिति दर्शाती है। यह असमानता शिक्षा के अधिकार को चुनौती दे रही है।
क्षेत्रीय अंतर
लैंगिक असमानता उत्तर और पश्चिमी भारत में अधिक है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में निजी स्कूलों में लड़कियों का नामांकन राष्ट्रीय औसत 48.1% से कम है। मेघालय और मिजोरम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में स्थिति बेहतर है, जहां लड़कियों की हिस्सेदारी अधिक है। 2023-24 में निजी स्कूलों की हिस्सेदारी 17.2% से बढ़कर 22.5% हुई, लेकिन लड़कियों का नामांकन कम रहा। यह क्षेत्रीय अंतर सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को दर्शाता है।
असमानता के कारण
निजी स्कूलों में लैंगिक असमानता की कई वजहें हैं। कई परिवार लड़कों की शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं। निजी स्कूलों की ऊंची फीस भी बाधा है, जिसके चलते परिवार एक बच्चे की पढ़ाई पर निवेश करते हैं, और लड़के चुन लिए जाते हैं। स्कूलों की दूरी और लड़कियों की सुरक्षा भी चिंता का विषय है। ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक मान्यताएं लड़कियों की शिक्षा में रुकावट डालती हैं। ये कारक असमानता को बढ़ा रहे हैं।
सरकारी बनाम निजी स्कूल
2023-24 में सरकारी स्कूलों में लड़कियों की हिस्सेदारी 54% रही, जबकि निजी स्कूलों में यह 33% थी। सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा और बेहतर पहुंच के कारण लड़कियों का नामांकन अधिक है। निजी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम और बेहतर सुविधाओं की मांग बढ़ी है, लेकिन इसका लाभ मुख्य रूप से लड़कों को मिला। 2012-13 से 2023-24 तक निजी स्कूलों में छात्रों की हिस्सेदारी 28.2% से बढ़कर 36.3% हुई। यह बदलाव लैंगिक असमानता को उजागर करता है।
