Paris News: फ्रांस में एक बार फिर सरकार गिर गई है। नए प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू ने सोमवार, 6 अक्टूबर को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने रविवार शाम ही अपने नए मंत्रिमंडल की घोषणा की थी और सोमवार दोपहर पहली कैबिनेट बैठक होनी थी। लेकिन बैठक से पहले ही उन्होंने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को अपना इस्तीफा सौंप दिया। लेकोर्नू महज 27 दिन तक ही प्रधानमंत्री पद पर रह सके। इसके साथ ही वे फ्रांस के हाल के इतिहास में सबसे कम समय तक पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री बन गए हैं ।
मंत्रिमंडल घोषित होते ही शुरू हुई आलोचना
लेकोर्नू के इस्तीफे का तत्काल कारण उनके द्वारा घोषित नया मंत्रिमंडल रहा। रविवार को घोषित इस मंत्रिमंडल में 18 मंत्रियों में से 12 पुराने चेहरे ही थे। यह लगभग उनके पूर्ववर्ती फ्रांस्वा बायरू के मंत्रिमंडल जैसा ही था। इस कैबिनेट लाइनअप की सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर ही कई दलों के सदस्यों ने आलोचना की। उन्होंने इसमें बदलाव की कमी पर नाराजगी जताई। माना जा रहा है कि सहयोगियों और विरोधियों दोनों के बढ़ते दबाव के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
संसद में बहुमत न होना है मूल समस्या
फ्रांस की मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल की जड़ में संसद में किसी भी दल का बहुमत न होना है। साल 2022 के चुनावों के बाद से ही राष्ट्रपति मैक्रों का दल संसद में बहुमत हासिल नहीं कर पाया है। इसकी वजह से पिछले एक साल में लेकोर्नू मैक्रों के चौथे प्रधानमंत्री बने थे। उनसे पहले फ्रांस्वा बायरू और मिशेल बार्नियर भी संसद में विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए थे। कोई भी सरकार बिना बहुमत के लंबे समय तक चल पाना मुश्किल हो रहा है।
विपक्ष ने मांगे राष्ट्रपति मैक्रों का इस्तीफा
लेकोर्नू के इस्तीफे के बाद विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दक्षिणपंथी रैसम्बलमेंट नेशनल के अध्यक्ष जॉर्डन बार्डेला ने तुरंत नए चुनाव कराने का आह्वान किया है। वहीं, वामपंथी ला फ्रांस इनसोमिसे पार्टी की एक प्रमुख सदस्य मथिल्डे पैनोट ने सीधे मैक्रों के इस्तीफे की मांग की है। इससे पहले सितंबर में ही दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन ने भी यूरोपीय चुनावों में हार के बाद मैक्रों से इस्तीफे की मांग की थी।
देश के सामने आर्थिक चुनौतियां
फ्रांस इस समय गंभीर आर्थिक चुनौतियोंbका सामना कर रहा है। देश का सार्वजनिक ऋण रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। फ्रांस का कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद के 113% के बराबर है, जो यूरोपीय संघ के नियमों में तय 60% की सीमा से लगभग दोगुना है। पिछले तीन बजटों को बिना संसदीय मतदान के ही पारित किया गया था, जिसकी विपक्ष ने कड़ी आलोचना की है। लेकोर्नू के सामने ही इन आर्थिक समस्याओं से निपटने की बड़ी चुनौती थी।
मैक्रों की रणनीति नहीं ला पाई नतीजे
राष्ट्रपति मैक्रों ने पिछले साल संसद भंग करके नए चुनाव कराए थे। उन्हें उम्मीद थी कि इससे उनकी पार्टी को बहुमत मिल जाएगा। लेकिन यह रणनीति उलटी पड़ गई और विधानसभा में मैक्रों का गुट अल्पमत में आ गया। इसके बाद से ही देश लगातार राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहा है। लेकोर्नू की नियुक्ति भी इसी संकट को कम करने के प्रयास का हिस्सा थी। लेकिन यह प्रयास भी सफल नहीं हो पाया और देश को एक बार फिर नए प्रधानमंत्री की तलाश है।
