New Delhi: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस. ओका ने देश की राजनीतिक व्यवस्था पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान हर नागरिक को वैज्ञानिक सोच विकसित करने के लिए कहता है। इसके बावजूद, देश के नेता और राजनीतिक दल केवल धर्मों को खुश करने में व्यस्त हैं। जस्टिस ओका ने यह बात नई दिल्ली में आयोजित 16वें वी.एम. तारकुंडे मेमोरियल व्याख्यान के दौरान कही। उन्होंने कुंभ मेले और पर्यावरण प्रदूषण पर भी कड़े सवाल उठाए।
राजनीतिक दलों पर साधा निशाना
जस्टिस ओका ने कहा कि आज का राजनीतिक वर्ग सुधारों में कोई दिलचस्पी नहीं रखता है। चाहे कोई भी पार्टी हो, वे सब धर्मों को खुश करने में विश्वास रखते हैं। उन्होंने चिंता जताई कि अंधविश्वास के खिलाफ बोलने वालों को समर्थन मिलने के बजाय निशाना बनाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के जज ने स्पष्ट किया कि वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना संविधान के अनुच्छेद 51ए(एच) के तहत एक मौलिक कर्तव्य है। इस कर्तव्य को निभाने से धार्मिक स्वतंत्रता कम नहीं होती।
‘अंधविश्वास सभी धर्मों में मौजूद’
जस्टिस ओका ने जोर देकर कहा कि अंधविश्वास किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है। यह सभी धर्मों में फैला हुआ है। उन्होंने कहा, “जब आप अंधविश्वास से लड़ते हैं, तो आप धर्म के खिलाफ नहीं होते। आप वास्तव में धर्म के सही उद्देश्य की मदद करते हैं।” उन्होंने लोगों को सलाह दी कि अंधविश्वास को धार्मिक भक्ति समझने की भूल न करें। समाज में तर्कसंगत आवाजों को अक्सर धर्म-विरोधी बताकर चुप करा दिया जाता है।
कुंभ मेला और प्रदूषित नदियां
पर्यावरण के मुद्दे पर बात करते हुए जस्टिस ओका ने कुंभ मेले का जिक्र किया। उन्होंने सवाल किया कि क्या प्रदूषित हो चुकी नदियों को पवित्र माना जा सकता है? उन्होंने कहा:
- धार्मिक उत्सवों के दौरान जल प्रदूषण बढ़ता है।
- लाउडस्पीकरों का बेहिसाब इस्तेमाल होता है।
- नाशिक में अगले कुंभ के लिए सैकड़ों साल पुराने पेड़ काटे जा रहे हैं।
जस्टिस ओका ने कहा कि धर्म के नाम पर पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचाया जा सकता। कोई भी धार्मिक कार्य संवैधानिक अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकता।
डॉ. दाभोलकर के बलिदान को किया याद
अपने संबोधन में जस्टिस ओका ने तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर को भी याद किया। उन्होंने कहा कि डॉ. दाभोलकर ने प्रयोगों के जरिए साबित किया कि अंधविश्वास का कोई आधार नहीं है। उन्होंने नागरिकों को वैज्ञानिक सोच अपनाने के लिए प्रेरित किया। इसी वजह से उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित न कर पाना हमारी शासन व्यवस्था की विफलता है।
