Himachal News: सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद हिमाचल सरकार ने वन भूमि की जांच के लिए बड़ा कदम उठाया है। हर जिले में स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीमें गठित की जाएंगी। इनका मकसद राजस्व विभाग द्वारा आबंटित वन भूमि को खंगालना है। 1980 में फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट लागू होने के बाद भी कई गड़बड़ियां सामने आई हैं। यह कदम गोडवर्मा बनाम सरकार मामले में आए फैसले का नतीजा है। सरकार अब ऐसी जमीन को वन विभाग को वापस दिलाने की तैयारी में है।
वन भूमि पर गहराता संकट
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि वन भूमि का गलत आबंटन बर्दाश्त नहीं होगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1980 से पहले तिब्बतियों को बसाने के लिए भी ऐसी जमीन दी गई थी। कई जिलों में राजस्व विभाग ने बिना मंजूरी के फैसले लिए। अब इन टीमों को हर केस की बारीकी से जांच करनी होगी। अगर जमीन वापस नहीं ली जा सकती, तो उसकी कीमत वसूल की जाएगी। यह राशि वन विकास में खर्च होगी।
स्पेशल टीम का ढांचा
हर जिले की टीम में उपायुक्त चेयरमैन होंगे। जिला राजस्व अधिकारी सदस्य सचिव की भूमिका निभाएंगे। वहीं, डीएफओ भी इस टीम का हिस्सा होंगे। ये तीनों मिलकर वन भूमि के पुराने रिकॉर्ड खंगालेंगे। सरकार ने साफ किया कि ऐसी जमीन सिर्फ वनीकरण के लिए ही इस्तेमाल हो सकती है। अगर दूसरी वजह से दी गई, तो उसे वापस लिया जाएगा। यह कदम व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की दिशा में है।
पुराने मामलों की उलझन
1980 से पहले के आबंटन आज भी सिरदर्द बने हुए हैं। तिब्बती समुदाय को दी गई जमीन इसका बड़ा उदाहरण है। कई बार जनहित के नाम पर नियमों को ताक पर रखा गया। अब इन टीमों को फैसला करना होगा कि क्या जनहित वाली जमीन छोड़ी जाए या उसकी कीमत ली जाए। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह प्रक्रिया आसान नहीं होगी। पुराने रिकॉर्ड और कानूनी पेचीदगियां चुनौती बन सकती हैं।
सरकार पर बढ़ता दबाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। वन भूमि की सुरक्षा अब प्राथमिकता बन गई है। द टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, गलत आबंटन से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा है। स्पेशल टीमें न सिर्फ जमीन वापस दिलाएंगी, बल्कि भविष्य के लिए सबक भी सिखाएंगी। यह देखना बाकी है कि यह पहल कितनी कारगर साबित होती है। हर जिले में जांच का काम जल्द शुरू होगा।
