National News: पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च चंडीगढ़ और चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने बड़ी सफलता हासिल की है। अब अपराध स्थल पर मिली खोपड़ी से पता चल सकेगा कि वह पुरुष की है या महिला की। खोपड़ी के पीछे स्थित बाहरी शीर्ष उभार की आकृति से लिंग की सटीक पहचान संभव हुई है।
यह शोध नीदरलैंड के साइंस डायरेक्ट जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोध टीम का नेतृत्व पीजीआईएमईआर के रेडियोलॉजी विभाग के डॉक्टर मोहिंदर शर्मा ने किया। डॉक्टर शर्मा हिमाचल प्रदेश के शिमला के रहने वाले हैं। शोधार्थियों ने इस तकनीक के पेटेंट के लिए आवेदन किया है।
पुरुष और महिला की खोपड़ी में अंतर
डॉक्टर मोहिंदर शर्मा के अनुसार पुरुषों और महिलाओं की खोपड़ी में बाहरी शीर्ष उभार की आकृति में स्पष्ट अंतर होता है। पुरुषों की खोपड़ी में यह हिस्सा अधिक उभरा और मोटा होता है। महिलाओं में यह हिस्सा सपाट और कोमल दिखाई देता है। इस अंतर के आधार पर सटीक पहचान संभव हुई है।
शोध में सीटी स्कैन इमेजिंग के जरिए इन आकृतियों का कंप्यूटर आधारित विश्लेषण किया गया। परिणाम चौंकाने वाले रहे। लगभग 89.4 प्रतिशत मामलों में लिंग की सही पहचान संभव हुई। यह तरीका फोरेंसिक विज्ञान में क्रांति ला सकता है।
331 वयस्कों के डेटा पर आधारित शोध
इस शोध में 331 वयस्कों के सीटी स्कैन डेटा का उपयोग किया गया। इनमें 167 पुरुष और 164 महिलाएं शामिल थीं। माप के लिए रेडिएंट डीआईसीओएम व्यूअर सॉफ्टवेयर का उपयोग किया गया। इसमें बाहरी शीर्ष उभार की लंबाई, ऊंचाई और कोणीय माप दर्ज किए गए।
सभी आंकड़ों को विभेदक फलन विश्लेषण से गुजारा गया। इससे अत्यधिक सटीक परिणाम प्राप्त हुए। शोध में यह भी पाया गया कि बुजुर्गों में बाहरी शीर्ष उभार की आकृति अधिक स्पष्ट होती है। इससे लिंग पहचान की सटीकता 90 प्रतिशत तक पहुंच जाती है।
फोरेंसिक विज्ञान में नई क्रांति
यह शोध उत्तर पश्चिम भारत की आबादी पर आधारित है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसे पूरे देश में लागू करने से पहले अन्य जातीय समूहों में परीक्षण जरूरी है। यह तकनीक गैर आक्रामक, सटीक और विश्वसनीय तरीका साबित हो सकती है।
डॉक्टर शर्मा का कहना है कि बाहरी शीर्ष उभार आकृति विज्ञान डिजिटल फोरेंसिक में नई क्रांति ला सकता है। खोपड़ी की बनावट से लिंग की पहचान करना अब आसान होगा। इससे अपराधिक मामलों की जांच में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी।
यह शोध फोरेंसिक विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण खोज साबित हो सकता है। अपराध स्थल पर मिले अवशेषों से पीड़ित की पहचान में यह तकनीक कारगर साबित होगी। पुराने मामलों की जांच में भी इससे मदद मिल सकती है।
