टॉवर लाइन शोषित जागरूकता मंच के राष्ट्रीय संयोजक व भारतीय किसान यूनियन के हिमाचल प्रदेश में संयोजक अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता रजनीश शर्मा ने बताया कि ट्रांसमिशन लाइनों व बिजली के बड़े टावरों की वजह से हिमाचल प्रदेश में लगभग 15 लाख से अधिक परिवारों की मलकीत भूमि पर हिमाचल सरकार तथा केंद्र सरकार प्राइवेट कंपनियों के माध्यम से रात दिन खरबों रुपए कमाकर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रही है। लेकिन मुहावरे, भूमि अधिग्रहण तथा किराए के नाम पर गरीब किसान को फूटी कौड़ी भी नहीं दी जा रही है। जबकि उसको अपने मन के जमीन से बिना किसी एग्रीमेंट तथा बिना कोई रजिस्ट्री, मॉर्टगेज डीड, लीज डीड के बिना भूमिहीन किया जा रहा है। पूंजीपतियों के प्रभाव में आकर लाखों प्रभावित किसानों के पक्ष में विशेष भूमि अधिग्रहण कानून नहीं बनाया जा रहा है जिसमें मुख्यतः निम्नलिखित समस्याएं हैं:
1.ट्रांसमिशन लाइनों को बिछाने के लिए उद्योगपतियों के प्रभाव में नहीं बनाए जाते हैं सख्त कानून।
तारों के नीचे आई भूमि तथा तारों के साथ प्रभावित क्षेत्र की भूमि के ऊपर किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता,
2. ट्रांसमिशन लाइनों के नीचे किसी भी प्रकार का घर, मवेशी खाना या व्यवसाय नहीं किया जा सकता है तथा इंसान या किसी भी हुयूमन लाइफ के जीवन के लिए खतरनाक है।
3. जिन किसानों की भूमि के ऊपर से ट्रांसमिशन लाइन गुजरती है वह सभी किसान भविष्य के लिए भूमिहीन हो जाते हैं बावजूद इसके भूमि अधिग्रहण का कोई भी प्रावधान नहीं है?
4. जितने भी घर दुकान आवासीय परिसर या व्यवसायिक संस्थान तारों के नीचे आएंगे। उन सब की मिल्कियत भूमि को अधिग्रहण किया जाना बहुत जरूरी है, लेकिन प्राइवेट उद्योगपतियों को नुकसान ना हो इस मकसद से सरकार ने आज तक कोई कानून नहीं बनाया है।
जिन किसानों की जमीन पर उच्च तापीय क्षमता के बिजली के लगे हैं, उनके टावर के नीचे की जमीन बेकार हो जाती है। 2003 में भारत सरकार ने विधुत अधिनियम 2003 बनाया और 2006 में इसके नियम बनाये है। इनके नियमों के मुताबिक ट्रांसमिशन कंपनियों को एक टॉवर लगाने और किसानों के जमीन में रेखांकित करने के लिये उन्हें किसान की सहमति लेना जरूरी होता है। यह नियम 3.1(ए) के तहत है। यदि किसान सहमति से इंकार करते है तो ट्रांसमिशन कंपनियां जिला कलेक्टर से सम्पर्क कर सकती है और कलेक्टर को मुआवजे को प्राइम, एग्रीकल्चर व रिमोट लैंड के आधार पर मुआवजा निर्धारण करने का अधिकार दिया गया है। मुआवजे के बाद ट्रांसमिशन कंपनियां टावरों का निर्माण कर सकती है और लाइने बिछा सकती है। लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि प्राइवेट ट्रांसमिशन कंपनियां सरकारी अधिकारियों व विभागों के साथ मिलीभगत कर प्रभावित किसानों को ना तो किसी प्रकार का मुआवजा देती है और ना ही किसी भी प्रकार के एग्रीमेंट करती हैं।
जब एक टावर का निर्माण होता है, लाइन खीची जाती है, मौजूदा फसल सहित बगीचे, पेड़, मकान, ट्यूब बेल, गौशाला, आदि होता है तो सभी भविष्य के लिए खराब हो जाते है। क्योकि प्रत्येक टॉवर का वजन लगभग 20 टन होता है। टॉवर निर्माण के बाद लगभग 1000 वर्ग गज जमीन स्थाई रूप से बेकार हो जाती है और टावर व तारों के दोनों तरफ की प्रभावित जमीन से लगभग 4000 वर्ग गज की परिधि में आने वाली भूमि भी बेकार हो जाती है।
हैरानी की बात है कि ट्रांसमिशन टावर व तारों के नीचे आने वाली मिल्कियत जमीन किसानों के नाम ही रहती है। लेकिन यह किसी भी उद्देश्य या निर्माण कार्य के उपयोग में नहीं लाई जा सकती। प्रत्येक की टावर में लगभग 10 से 12 एकड़ की जमीन अपना मार्केट मूल्य खो देती है तथा किसान अपनी भूमि को को बेच भी नहीं पाता है।
ट्रांसमिशन लाइनों के नीचे विधुत चुम्बकीय क्षेत्र के नीचे ध्वनि प्रदूषण, बारिश के दौरान बिजली से करंट के झटके की संभावना बनी रहती है। इसलिए यह भूमि घर निर्माण, खेती, पेड़ लगाने, गोदाम, तथा किसी भी प्रकार के व्यवसायिक के कार्य के लिए उपयोग में नहीं लाई जा सकती।
ट्रांसमिशन लाइनों के नीचे निर्माण कार्य करना पूरी तरह से निषेध है। बहुत ही आश्चर्य की बात है। जमीन कागजों में सिर्फ किसानों के नाम पर रह जाती है। लेकिन इस्तेमाल नही कर सकते और जमीन बेच नही सकते। स्वास्थ्य की समस्या तो बनी ही रहती है साथ ही जमीन का मूल्य स्थाई रूप से खत्म हो जाता हैं।
2003 के इस विद्युत अधिनियम में धारा 35 के तहत दिलचस्प बना दिया है। उन्होंने खंड में कहा है, इन नियमों में से कोई भी नियम 164 के तहत लागू नही है। 164 का यह विद्युत अधिनियम टॉवर के साथ ट्रांसमिशन कंपनियों को शक्ति देता है। जोकि किसी भी प्रकार ने न्यायसंगत व तर्कसंगत नहीं है तथा किसानों के संवैधानिक भूमि अधिकारों तथा मानवाधिकारों की उलंघना करता है। अंग्रेजी हुकूमत के बनाए हुए कानून का इस्तेमाल कर गरीब किसानों को भूमिहीन किया जा रहा है।
टेलीग्राफ पोल टॉवर क्या है, यह बहुत कम लोग ही जानते है। यह पोल 10 फिट और वजन 100 किलो ग्राम का होता था और 19 वी शताब्दी में जब टेलीग्राफ शुरू किया था। उस समय ज्यादातर रेल लाइनों के साथ-साथ मैसेज भेजने हेतु छोटे पोल लगाए जाते थे। जिसमें किसी भी प्रकार का फसल का नुकसान नहीं होता था, और ना ही जमीन की मार्केट वैल्यू प्रभावित होती थी।
2003 में जब विद्युत अधिनियम पारित किया गया तो अधिनियम में 1885 टेलीग्राफ के नियमों को लागू करने के लिये किसान के संबंध में प्रावधान किया। अब एक टेलीग्राफ पोल जो लगभग 100 किग्रा वजन के लिए बना था, वहीं 400 केवी-765 के वी की उच्च तापीय क्षमता के इलेक्ट्रिक टॉवर, जो लगभग 20 टन वजन वाले होते हैं तथा 46 मीटर तारों के दोनों तरफ के प्रभावित क्षेत्र की जमीन पर भी कब्जा करते है। जो पूरी तरह से किसानों कि जमीन को बेकार कर देते है।
अनिल अंबानी की ट्रांसमिशन लाइन के प्रभावित किसानों ने सभी राजनीतिक दलों के विधायकों तथा लोकसभा के सांसदों से सवाल कर पूछा है कि आखिर लाखों गरीब किसानों को उनके भूमि अधिकारों से क्यों वंचित किया जा रहा है। मंच ने सवाल उठाया कि प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार बताए कि कितने नेताओं तथा सरकारी अधिकारियों की मलकीत जमीन के ऊपर से ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण किया गया है?
प्रभावित किसानों द्वारा कृषि अध्यादेश के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन को समर्थन करने हेतु चल रहे क्रमिक धरना आठवें दिन में प्रवेश कर गया:
1. केंद्र सरकार पूंजीपतियों के प्रभाव में आकर किसान संगठनों की जायज मांगों पर फैसला नहीं ले रही है।
2. देश का अन्नदाता कड़ाके की ठंड में सड़कों पर सो रहा है और केंद्र सरकार में बैठे नेता तारीख पर तारीख डालकर मामले को लंबित डाल रहे हैं।
ट्रांसमिशन लाइन के किसानों के धरने में जिले के सभी प्रभावित किसानों के साथ साथ इलाके के गणमान्य लोगों के साथ महिलाओं, बच्चों, बजूर्गो, तथा सामाजिक संस्थाओं का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है और सभी लोग धरने पर पहुंचकर किसानों के साथ बैठकर किसानों की हौसला अफजाई कर रहे हैं।
मंच के प्रेस सचिव प्रेमलाल भडोल ने बताया कि आज धरने पर बैठे किसान सुखराम, संतराम, करमचंद, प्यार सिंह, के गंगाराम, होशियार सिंह, हीरालाल, प्रकाश ठाकुर, सूचा सिंह, बालक राम, इनके साथ मंच के जिला प्रधान बाबू राम, ठाकुर उप प्रधान हरि सिंह ठाकुर, सचिव प्रकाश ठाकुर मौजूद रहे।