Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से उड़ान भरने वाला यूरेशियन ग्रिफॉन गिद्ध सुरक्षित लौट आया है। ‘मारीच’ नामक इस गिद्ध ने 15,000 किलोमीटर की लंबी यात्रा पूरी की है। वन विभाग ने बुधवार को इसकी सफल वापसी की पुष्टि की। यह पक्षी चार देशों की यात्रा करने के बाद स्वदेश लौटा है।
विदिशा के संभागीय वन अधिकारी हेमंत यादव ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मारीच ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान का सफर तय किया। वन विभाग ने उपग्रह रेडियो कॉलर की मदद से इसकी पूरी यात्रा पर नजर रखी। इस तकनीक से गिद्धों के प्रवास और संरक्षण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
घायल अवस्था में मिला था गिद्ध
मारीच की कहानी बेहद दिलचस्प है। यह गिद्ध 29 जनवरी को सतना जिले के नागौर गांव में घायल अवस्था में मिला था। इसे पहले मुकुंदपुर चिड़ियाघर में इलाज के लिए ले जाया गया। बाद में भोपाल स्थित वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में इसका उपचार किया गया।
दो महीने के उपचार के बाद 29 मार्च को इस गिद्ध को स्वस्थ घोषित किया गया। वन विभाग ने इसे टैग लगाकर विदिशा के हलाली बांध क्षेत्र से मुक्त किया। तब से लेकर अब तक वन विभाग इसकी हर गतिविधि पर नजर बनाए हुए है।
पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका
वन विशेषज्ञों के अनुसार गिद्ध पर्यावरण संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं। ये पक्षी मृत पशुओं को खाकर बीमारियों के फैलने को रोकते हैं। सड़ते हुए शवों से पर्यावरण प्रदूषण होने की आशंका को ये कम करते हैं। इससे मिट्टी और पानी की गुणवत्ता में सुधार होता है।
गिद्ध पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में भी मदद करते हैं। ये प्रकृति के सफाई कर्मी के रूप में काम करते हैं। इनकी कमी से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ सकता है। इसलिए इनका संरक्षण बेहद जरूरी है।
यूरेशियन ग्रिफॉन की विशेषताएं
यूरेशियन ग्रिफॉन गिद्ध यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और एशिया के पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है। इसकी लंबाई आमतौर पर 95 से 110 सेंटीमीटर तक होती है। इसके पंखों का फैलाव 2.5 से 2.8 मीटर तक हो सकता है।
इन गिद्धों का वजन 6 से 11 किलोग्राम के बीच होता है। ये गर्म हवा के झोंकों में घंटों तक उड़ान भर सकते हैं। लंबी दूरी की उड़ान भरने की क्षमता इन्हें विशेष बनाती है। यही कारण है कि ये हजारों किलोमीटर का सफर आसानी से तय कर लेते हैं।
संरक्षण के प्रयास
वन विभाग गिद्धों के संरक्षण के लिए निरंतर काम कर रहा है। उपग्रह टैगिंग तकनीक से इनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। इससे इनके प्रवास मार्गों और व्यवहार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। मारीच की सफल वापसी संरक्षण प्रयासों की सफलता को दर्शाती है।
इस तरह के अध्ययन से गिद्धों के संरक्षण की रणनीति बनाने में मदद मिलती है। वन विभाग इन आंकड़ों के आधार पर भविष्य की कार्ययोजना तैयार करता है। गिद्धों की सुरक्षा के लिए यह जानकारी बेहद उपयोगी साबित हो रही है।
