Karnataka News: एलन मस्क के स्वामित्व वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का फैसला किया है। हाईकोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत सरकारी अधिकारियों द्वारा कंटेंट हटाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी। एक्स का कहना है कि यह फैसला भारतीय नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
प्लेटफॉर्म ने सोमवार को अपने आधिकारिक हैंडल के माध्यम से बयान जारी किया। कंपनी ने कहा कि वह भारतीय कानून का सम्मान करती है और उसका पालन करती है। हालांकि हाईकोर्ट का आदेश उन संवैधानिक मुद्दों को हल करने में विफल रहा है जो याचिका में उठाए गए थे। एक्स ने भारत में सार्वजनिक संवाद में अपने योगदान पर जोर दिया।
हाईकोर्ट का निर्णय और तर्क
कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को एक्स की याचिका को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इंटरनेट मीडिया को विनियमित करने की आवश्यकता है। विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में यह विनियमन जरूरी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय बाजार को कानूनों की अवहेलना का स्थान नहीं माना जा सकता।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस अधिकारी सहयोग नामक गुप्त ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से सामग्री हटाने के आदेश जारी कर सकते हैं। यह प्रक्रिया सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत वैध है। अदालत ने माना कि सार्वजनिक हित और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में सरकार को ऐसे अधिकार होने चाहिए।
एक्स की आपत्तियां और स्थिति
एक्स ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि पुलिस अधिकारियों द्वारा सामग्री हटाने के मनमाने आदेश संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। कंपनी का मानना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है। सहयोग पोर्टल के माध्यम से दिए गए आदेशों में पर्याप्त स्पष्टता का अभाव है। इससे उपयोगकर्ताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
प्लेटफॉर्म ने जोर देकर कहा कि वह भारत में अपने उपयोगकर्ताओं की आवाज की रक्षा करना चाहता है। कंपनी सामग्री हटाने के लिए मानक प्रक्रियाओं का पालन करती है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब कंपनी सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी। एक्स का मानना है कि यह मामला देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
विधिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और सरकारी विनियमन के बीच संतुलन का प्रश्न उठाता है। एक ओर जहां सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जिम्मेदारी है वहीं दूसरी ओर उपयोगकर्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा भी जरूरी है। भारत का सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम इन दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करता है।
विशेषज्ञों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले में महत्वपूर्ण मिसाल कायम करेगा। यह तय होगा कि सरकारी अधिकारी सोशल मीडिया सामग्री को किस हद तक विनियमित कर सकते हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का डिजिटल दुनिया में क्या दायरा है। दोनों पक्षों के तर्कों की कानूनी जांच होगी।
भारत में एक्स की भूमिका
एक्स प्लेटफॉर्म ने भारत में सार्वजनिक संवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक चर्चाओं से लेकर सामाजिक मुद्दों तक विभिन्न विषयों पर बातचीत होती है। कंपनी का कहना है कि वह भारतीय उपयोगकर्ताओं को सुरक्षित और स्वतंत्र मंच प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत एक्स के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार है।
कंपनी ने भारत सरकार के साथ सहयोग करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। साथ ही उसने उपयोगकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी रास्ता अपनाने का फैसला किया है। इस मामले का परिणाम न केवल एक्स बल्कि अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए भी महत्वपूर्ण होगा। भारत में डिजिटल अधिकारों की दिशा तय होगी।
