Kerala News: प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित एलियाहू बेजालेल का 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। केरल के चेंदमंगलम गांव में जन्मे बेजालेल ने इजरायल के रेगिस्तान में कृषि क्रांति ला दी। उन्होंने चरवाहे की नौकरी से शुरुआत करके वैश्विक स्तर का कृषि विशेषज्ञ बनने तक का सफर तय किया। उनका जीवन भारत और इजरायल के बीच एक सद्भावना दूत के रूप में याद किया जाएगा।
एलियाहू बेजालेल वर्ष 1955 में मात्र 25 वर्ष की आयु में इजरायल पहुंचे थे। उन्होंने अपनी मातृभूमि भारत के प्रति गहरा लगाव हमेशा बनाए रखा। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि सह-अस्तित्व की भावना का पाठ उन्हें भारत ने ही सिखाया। भारत सरकार ने वर्ष 2006 में उन्हें प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित किया था।
रेगिस्तान में कृषि क्रांति की शुरुआत
इजरायल आनेके कुछ वर्षों बाद उन्होंने नेगेव रेगिस्तानी क्षेत्र में बसने का निर्णय लिया। यह वह दौर था जब वहां बहुत कम लोग रहना चाहते थे। 1959 में उन्होंने ग्लेडियोली फूलों के बल्ब उगाकर हॉलैंड को निर्यात करना शुरू किया। नेगेव की मिट्टी इन बल्बों की खेती के लिए बिल्कुल उपयुक्त साबित हुई। इसके बाद बेजालेल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
ग्रीनहाउस तकनीक में अग्रणी भूमिका
1969 मेंइजरायल के कृषि मंत्रालय ने उन्हें इंग्लैंड भेजा। वहां से लौटकर उन्होंने दो साझेदारों के साथ मिलकर इजरायल का पहला आधुनिक ग्रीनहाउस बनाया। धीरे-धीरे यह क्षेत्र इजरायली विशेषज्ञता का वैश्विक उदाहरण बन गया। इसके बाद उन्होंने हॉलैंड को गुलाब निर्यात करना शुरू किया। इजरायल उस देश का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया।
शुरुआती दिनों की चुनौतियां
बेजालेल नेकृषि के शुरुआती सिद्धांत वहीं सीखे। उनके पास शुरुआत में न पानी था न उपजाऊ जमीन। शुरुआत में उन्होंने सड़क रखरखाव, वानिकी और चरवाहे के रूप में काम किया। वे 500-600 भेड़-बकरियों को चराने ले जाते थे। पहले बच्चे के जन्म के बाद भी वे उसे खेत पर साथ ले जाते थे। एक उलटी मेज के अंदर रखकर वे काम करते थे।
वे डेविड बेन गुरियन की उस महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा बने। इस योजना में विशाल रेगिस्तानी क्षेत्रों को उपजाऊ कृषि भूमि में बदलने का स्वप्न था। उन्हें इजरायल के दक्षिण में नेगेव रेगिस्तान के एक गांव में जमीन दी गई। यहां उन्होंने साबित किया कि रेगिस्तान में भी गुलाब खिल सकते हैं।
भारतीय किसानों के साथ ज्ञान साझा करना
1971 सेवे भारत के विभिन्न हिस्सों में जाकर बागवानी पर व्याख्यान देते रहे। वे नई तकनीक सिखाते रहे। इजरायल के दक्षिणी हिस्से में स्थित उनके खेत भारतीय किसानों और नेताओं के बीच आकर्षण का केंद्र रहे। पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा, कृषि मंत्री शरद पवार और कृषिविद् एम.एस. स्वामीनाथन जैसे कई प्रमुख लोग उनके खेतों का दौरा कर चुके हैं।
नेगेव रेगिस्तान में बागवानी की शुरुआत कर बेजालेल ने 1964 में तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री से सर्वश्रेष्ठ निर्यातक का पुरस्कार हासिल किया। बागवानी में मिली अपनी विशेषज्ञता को उन्होंने भारतीय किसानों के साथ भी साझा किया। 1994 में इजरायल की संसद ने उन्हें कपलान पुरस्कार से सम्मानित किया।
भारतीय पहचान पर गर्व
एक साक्षात्कार मेंउन्होंने कहा था कि उन्हें भारतीय होने पर बेहद गर्व है। उनके बच्चे और पोते-पोतियां खुद को गर्व से कोचीन का निवासी और भारतीय बताते हैं। वे मानते हैं कि वे ऐसी संस्कृति से आते हैं जो सभी धर्मों का सम्मान करती है। उनके पूर्वजों ने कभी भी यहूदी-विरोध का सामना नहीं किया।
बेजालेल ने दोनों देशों के प्रति अपने प्यार को समर्पित करते हुए एक पुस्तक भी लिखी। इस पुस्तक का नाम है माई मदरलैंड माई फादरलैंड। एक सोशल मीडिया पोस्ट के मुताबिक उन्होंने अपने जन्म स्थान पर यहूदी सिनेगॉग के पास अपना घर भी बनवाया था। वे साल भर में दो महीने के लिए अपने इस घर में जरूर आते थे।
भारतीय यहूदी विरासत केंद्र और कोचीन यहूदी विरासत केंद्र ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। उनके जीवन को सादगी, दृढ़ संकल्प और परिवार व कार्य के प्रति समर्पण का उदाहरण बताया गया। एलियाहू बेजालेल ने कभी भी भारत से जुड़ी अपनी जड़ों को नहीं भुलाया। वे अपनी बेटी के साथ किद्रोन में रहते थे।
