Himachal News: हिमाचल प्रदेश के स्कूलों में पहली बार कपेंटेंसी बेस्ड परीक्षाएं दिसंबर माह में आयोजित की जाएंगी। बोर्ड कक्षाओं की मार्च-अप्रैल में होने वाली फाइनल परीक्षाओं से पहले छात्रों के शिक्षा स्तर की जांच की जाएगी। यह कदम नई शिक्षा नीति-2020 के प्रावधानों के तहत उठाया गया है।
हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड धर्मशाला ने इसकी तैयारी पूरी कर ली है। बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. राजेश शर्मा ने बताया कि कपेंटेंसी बेस्ड परीक्षा का आयोजन दिसंबर में किया जाएगा। इससे छात्रों को फाइनल परीक्षाओं की तैयारी में बड़ी मदद मिलेगी।
किन कक्षाओं के लिए होगी परीक्षा
यह परीक्षा कक्षा तीसरी, पांचवीं, आठवीं, दसवीं और जमा दो के विद्यार्थियों के लिए आयोजित की जाएगी। कक्षा तीसरी और पांचवीं के लिए अंग्रेजी, गणित, ईवीएस और हिन्दी विषयों में परीक्षा होगी। आठवीं और दसवीं कक्षा के छात्रों के लिए अंग्रेजी, हिन्दी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान विषय शामिल हैं।
जमा दो के छात्रों के लिए अंग्रेजी, गणित, रसायन विज्ञान, भौतिकी विज्ञान और जीव विज्ञान विषयों की परीक्षा आयोजित की जाएगी। सभी परीक्षाएं दिसंबर माह के पहले सप्ताह में करवाई जाएंगी। यह व्यवस्था राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के दिशा-निर्देशों के अनुसार है।
छात्रों को मिलेगा लाभ
इस परीक्षा से विद्यार्थियों की शिक्षा के स्तर का सही आकलन संभव हो सकेगा। अगर किसी छात्र के शिक्षा स्तर में कमी पाई जाती है तो उसे दूर किया जा सकेगा। बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध कंपेंटेसी बेस्ड प्रश्न बैंक की सहायता से छात्रों की तैयारी करवाई जा सकेगी।
इससे परीक्षा परिणाम में सुधार होने की उम्मीद है। साथ ही बोर्ड को यह जानकारी मिल सकेगी कि आगामी वार्षिक परीक्षाओं के लिए प्रश्न पत्र का कठिनाई स्तर कितना रखा जाए। इससे प्रश्न पत्र के स्तर को समायोजित करने में मदद मिलेगी।
नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन
बोर्ड परीक्षाओं में सुधार को नई शिक्षा नीति-2020 के प्रावधानों के तहत यह बड़ा बदलाव किया गया है। इस बार पांचवीं, आठवीं, दसवीं और जमा दो के छात्रों के महत्वपूर्ण विषयों की परीक्षाएं आयोजित करवाई जाएंगी। परिणामों के आधार पर छात्रों को फाइनल परीक्षाओं की तैयारी करने में मदद मिलेगी।
हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड का यह कदम शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के उद्देश्य से उठाया गया है। कपेंटेंसी बेस्ड परीक्षाओं से छात्रों की वास्तविक योग्यता का पता चल सकेगा। इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आने की संभावना है।
