India News: भारत में शिक्षा व्यवस्था पर एक गंभीर संकट मंडरा रहा है। शिक्षा मंत्रालय के नवीनतम आंकड़े चौंकाने वाले हैं। देश भर में लगभग 1,04,125 स्कूल ऐसे हैं जहां शिक्षक के नाम पर सिर्फ एक ही व्यक्ति है। इन एकल-शिक्षक वाले स्कूलों में 33 लाख से अधिक बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। यह स्थिति राष्ट्र निर्माण की रीढ़ कही जाने वाली शिक्षा प्रणाली पर गहरा सवाल खड़ा करती है।
हालांकि पिछले वर्षों की तुलना में इन स्कूलों की संख्या में कमी आई है। 2022-23 में यह संख्या 1,18,190 थी जो 2023-24 में घटकर 1,10,971 हो गई। यह लगभग छह प्रतिशत की गिरावट दर्शाता है। फिर भी, 34 लाख बच्चों का भविष्य अब भी अनिश्चितता के घेरे में है। सवाल यह है कि क्या एक शिक्षक बच्चों के सर्वांगीण विकास का दायित्व अकेले निभा सकता है।
राज्यवार स्थिति में बड़े अंतर
राज्यों के आंकड़े देखें तो तस्वीर और स्पष्ट होती है। आंध्र प्रदेश में एक शिक्षक वाले स्कूलों की संख्या सबसे अधिक 12,912 है। उत्तर प्रदेश 9,508 स्कूलों के साथ दूसरे स्थान पर है। झारखंड में 9,172 और महाराष्ट्र में 8,152 ऐसे स्कूल चल रहे हैं। इसके विपरीत दिल्ली में केवल 9 और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में मात्र 4 स्कूल ही एक शिक्षक पर निर्भर हैं।
छात्र नामांकन में उत्तर प्रदेश सबसे आगे
एकल-शिक्षक स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। यहां 6,24,327 बच्चे ऐसी व्यवस्था में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। झारखंड में 4,36,480 और पश्चिम बंगाल में 2,35,494 छात्र प्रभावित हैं। मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी दो लाख से अधिक बच्चे इस समस्या का सामना कर रहे हैं।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम और वास्तविकता
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में छात्र-शिक्षक अनुपात का स्पष्ट निर्देश है। प्राथमिक स्तर पर यह अनुपात 30:1 और उच्च प्राथमिक में 35:1 होना चाहिए। लेकिन एकल-शिक्षक स्कूलों में यह अनुपात पूरी तरह बिगड़ जाता है। इसका सीधा असर शिक्षण की गुणवत्ता और बच्चों के सीखने की प्रक्रिया पर पड़ता है।
शिक्षकों पर बढ़ता दबाव
एक ही शिक्षक को कक्षा एक से लेकर पांच तक के सभी विषय पढ़ाने पड़ते हैं। उसे सुबह की प्रार्थना से लेकर मध्याह्न भोजन के वितरण तक की जिम्मेदारी निभानी होती है। पढ़ाई के अलावा रिकॉर्ड अपडेट और रिपोर्ट तैयार करना भी उसी के जिम्मे होता है। इससे न только शिक्षण प्रभावित होता है बल्कि शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य पर भी दबाव पड़ता है।
समाधान के प्रयास
सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए स्कूलों के विलय जैसे कदम उठा रही हैं। इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव हो पा रहा है। लेकिन अभी भी हजारों शिक्षकों के पद विभिन्न राज्यों में खाली पड़े हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की तैनाती एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। कई शिक्षक शहरी इलाकों में काम करना पसंद करते हैं।
प्रति स्कूल छात्रों की औसत संख्या के मामले में चंडीगढ़ और दिल्ली सबसे ऊपर हैं। वहीं लद्दाख, मिजोरम और मेघालय जैसे राज्यों में यह संख्या काफी कम है। हिमाचल प्रदेश में प्रति स्कूल औसतन 82 छात्र हैं। यह आंकड़े संसाधनों के असमान वितरण को भी दर्शाते हैं। इस समस्या के समाधान के बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सपना अधूरा रहेगा।
