Uttar Pradesh News: लखनऊ के नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने फ्लोरल बायोडिग्रेडेबल राखी बनाई। यह राखी पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती। इसमें फूल, बीज और ऑर्गेनिक कॉटन का उपयोग होता है। रक्षाबंधन के बाद इसे मिट्टी में मिलाया जा सकता है। यह प्लास्टिक राखियों से होने वाले कचरे को कम करता है। यह पहल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देती है। कीमत 30 से 150 रुपये है।
बायोडिग्रेडेबल राखी क्या है
फ्लोरल बायोडिग्रेडेबल राखी प्राकृतिक सामग्री से बनती है। इसमें प्लास्टिक का उपयोग नहीं होता। सूखे फूल, बीज और ऑर्गेनिक कॉटन इस्तेमाल होते हैं। गेंदा, गुलाब, तुलसी और सूरजमुखी जैसे बीज इसमें शामिल हैं। यह राखी मिट्टी में मिलकर खाद बन जाती है। कुछ राखियों से पौधे भी उगाए जा सकते हैं। यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित है। त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचता। यह एलर्जी-मुक्त भी है।
पर्यावरण के लिए फायदेमंद
बायोडिग्रेडेबल राखी पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती। यह प्लास्टिक कचरे को कम करती है। रक्षाबंधन के बाद राखी मिट्टी में मिल जाती है। बीज वाली राखी से पौधे उग सकते हैं। यह त्वचा के लिए सुरक्षित है। इससे एलर्जी का खतरा नहीं होता। राखी बनाने में बायोडिग्रेडेबल गोंद का उपयोग होता है। यह पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है। लोग इसे अपनाकर कचरे को कम कर सकते हैं।
कैसे बनती है यह राखी
इन राखियों में सूखे फूल जैसे गेंदा और गुलाब शामिल हैं। तुलसी, मेथी, पालक और सूरजमुखी के बीज डाले जाते हैं। धागे के लिए ऑर्गेनिक कॉटन का उपयोग होता है। चिपकाने के लिए बायोडिग्रेडेबल गोंद इस्तेमाल करते हैं। यह पूरी तरह प्राकृतिक सामग्री से बनती है। राखी को बनाने की प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल है। यह राखी रक्षाबंधन को इको-फ्रेंडली बनाती है। इसका उत्पादन लखनऊ में हो रहा है।
कीमत और उपलब्धता
बायोडिग्रेडेबल राखी की कीमत 30 से 150 रुपये के बीच है। साधारण फ्लोरल राखी 30 से 80 रुपये में मिलती है। बीज वाली राखी 60 से 150 रुपये की होती है। फैंसी या हैंडमेड राखी 150 रुपये से शुरू होती है। इन्हें ऑनलाइन फ्लिपकार्ट, अमेजन पर खरीदा जा सकता है। सोशल मीडिया पेज और स्थानीय दुकानों पर भी उपलब्ध हैं। यह राखी आसानी से मिल जाती है।
उपयोग के बाद क्या करें
रक्षाबंधन के बाद राखी को मिट्टी में गाड़ दें। बीज वाली राखी को पानी देकर पौधा उगाएं। गैर-बीज वाली राखी को खाद में डालें। यह मिट्टी में मिलकर प्राकृतिक खाद बन जाती है। इससे कोई कचरा नहीं बचता। कुछ हफ्तों में बीज से पौधा निकल सकता है। यह पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करता है। लोग इसे अपनाकर रक्षाबंधन को हरा-भरा बना सकते हैं।
पर्यावरण संरक्षण की पहल
लखनऊ का नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दे रहा है। प्लास्टिक राखियां हर साल कूड़े में फेंकी जाती हैं। यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं। बायोडिग्रेडेबल राखी इस समस्या का समाधान है। यह राखी टिकाऊ और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है। लोग इसे अपनाकर त्योहार को इको-फ्रेंडली बना सकते हैं। यह पहल अन्य शहरों में भी प्रेरणा दे रही है।
