Global News: हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि 7,000 से अधिक बांधों ने धरती की धुरी को करीब एक मीटर खिसका दिया है। बांधों में जमा पानी का भारी वजन धरती के घूर्णन संतुलन को प्रभावित कर रहा है। इस प्रक्रिया को ट्रू पोलर वांडर कहते हैं। इससे समुद्र का जलस्तर भी 21 मिलीमीटर कम हुआ है। यह बदलाव जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को आंशिक रूप से कम करता है।
बांधों का प्रभाव
1835 से 2011 तक बने 6,862 बांधों का अध्ययन हार्वर्ड की टीम ने किया। नताशा वेलेंसिक के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने पाया कि बांधों में जमा पानी ने धरती की धुरी को दो चरणों में हिलाया। 1835 से 1954 तक उत्तरी अमेरिका और यूरोप में बांधों से उत्तरी ध्रुव 20 सेंटीमीटर रूस की ओर खिसका। 1954 से 2011 तक एशिया और पूर्वी अफ्रीका में बांधों ने इसे 57 सेंटीमीटर पश्चिम की ओर धकेला।
समुद्र स्तर पर असर
बांधों में पानी जमा होने से समुद्र में पानी की वापसी रुक गई। इससे वैश्विक समुद्र स्तर में 0.83 इंच की कमी आई। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह कमी जलवायु परिवर्तन से होने वाली समुद्र स्तर वृद्धि को थोड़ा कम करती है। लेकिन बांधों का स्थान समुद्र स्तर वृद्धि की ज्यामिति को बदल देता है। यह भविष्य में तटीय क्षेत्रों के लिए चुनौती बन सकता है। वैज्ञानिकों ने इसे समुद्र स्तर अनुमानों में शामिल करने की सलाह दी।
धुरी का खिसकाव
धरती की धुरी का खिसकाव प्राकृतिक संतुलन को प्रभावित करता है। बांधों में जमा पानी का वजन पृथ्वी की सतह पर असमान वितरण पैदा करता है। इससे धरती का घूर्णन अक्ष हिलता है। यह बदलाव छोटा है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह ग्लेशियरों के पिघलने जैसे बड़े बदलावों को समझने में मदद करेगा। हार्वर्ड की स्टडी में इसे ट्रू पोलर वांडर का उदाहरण बताया गया। यह मानव गतिविधियों का पृथ्वी पर गहरा प्रभाव दर्शाता है।
भविष्य की चिंताएं
हालांकि धुरी का यह खिसकाव अभी बड़ा खतरा नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह भविष्य में समस्याएं पैदा कर सकता है। बांधों ने प्राकृतिक जल चक्र को बाधित किया है। इससे समुद्री जीवन और चुंबकीय क्षेत्र पर असर पड़ रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के साथ बांधों का प्रभाव समुद्र तटीय क्षेत्रों में जोखिम बढ़ा सकता है। इसके लिए वैश्विक स्तर पर सावधानी बरतने की जरूरत है।
