Himachal News: भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने हिमाचल प्रदेश के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। ब्यूरो ने राज्य को अब पूरी तरह से नई और उच्चतम भूकंपीय श्रेणी ‘जोन-6’ में डाल दिया है। इसका मतलब है कि पूरा प्रदेश अब भूकंप के लिहाज से सर्वाधिक जोखिम वाले क्षेत्र में आ गया है। यह बदलाव राज्य की सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के लिए बेहद अहम माना जा रहा है।
खत्म हुआ जोन-4 और जोन-5 का अंतर
पहले हिमाचल प्रदेश को खतरे के हिसाब से दो हिस्सों में बांटा गया था। कांगड़ा, चंबा, मंडी और कुल्लू जैसे जिले जोन-5 यानी सबसे खतरनाक क्षेत्र में थे। वहीं शिमला, सोलन और सिरमौर जोन-4 में आते थे। नए नक्शे ने इस विभाजन को पूरी तरह खत्म कर दिया है। अब वैज्ञानिक दृष्टि से पूरा राज्य एक समान खतरे वाले क्षेत्र में शामिल हो गया है। बीआईएस ने यह फैसला 2025 डिजाइन कोड के तहत आधुनिक जोखिम आकलन के आधार पर लिया है।
निर्माण कार्यों के नियम होंगे सख्त
इस बदलाव का सीधा असर प्रदेश के विकास कार्यों पर पड़ेगा। अब राज्य सरकार और प्रशासन को नए सिरे से नियम बनाने होंगे। घर, सड़क और पुलों का निर्माण अब जोन-6 के कड़े सुरक्षा मानकों के तहत होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला भूस्खलन और चट्टान धंसने जैसे खतरों से निपटने में मदद करेगा। अब भवन अनुमति और टाउन प्लानिंग में सबसे ऊंची श्रेणी के रिस्क फैक्टर को ध्यान में रखना अनिवार्य होगा।
1905 की तबाही और लगातार आते झटके
हिमाचल का इतिहास भूकंप के लिहाज से बेहद डरावना रहा है। साल 1905 में कांगड़ा में आए जलजले ने 10 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी। हाल के वर्षों में चंबा और आसपास के इलाकों में लगातार धरती डोल रही है। रिक्टर स्केल पर अक्सर 3 तीव्रता वाले झटके महसूस किए जाते हैं। इन परिस्थितियों को देखते हुए पूरे राज्य को हाई रिस्क जोन में डालना सुरक्षा के लिहाज से एक जरूरी कदम है।
