Himachal News: हिमाचल प्रदेश के फार्मा उद्योग में गुणवत्ता का संकट गहरा रहा है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। आठ महीनों में प्रदेश के उद्योगों में बनी चार सौ उन्नीस दवाएं गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरीं। इसी अवधि में देशभर में एक हजार तीन सौ तैंतीस दवाओं में खामी पाई गई।
सीडीएससीओ हर माह ड्रग अलर्ट जारी करता है। इसमें बार-बार हिमाचल के औद्योगिक क्षेत्रों के नाम शामिल होते हैं। इससे प्रदेश के फार्मा हब की साख को झटका लगा है। दवा नियामक प्रणाली की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं।
बद्दी और नालागढ़ के उद्योगों पर सबसे अधिक आरोप
बद्दी, नालागढ़, पांवटा साहिब और कालाअंब क्षेत्रों के उद्योग अलर्ट में बार-बार आ रहे हैं। बद्दी स्थित मार्टिन एंड ब्राउन उद्योग के इस माह दो सैंपल फेल मिले। इससे पहले अक्टूबर में भी इसका एक सैंपल फेल हुआ था। विंगस बायोटेक उद्योग का सैंपल लगातार दो महीने फेल रहा।
फार्मारूट उद्योग की दवा का सैंपल सितंबर और नवंबर में फेल पाया गया। सिरमौर जिले के जी लैबोरेट्री का सैंपल लगातार फेल हो रहा है। लैबोरेट फार्मा और अथेंस लाइफ के सैंपल भी गुणवत्ता परीक्षण में पास नहीं हो पाए।
महीने दर महीने बढ़ रही है फेल दवाओं की संख्या
अप्रैल महीने में प्रदेश की सत्तावन दवाएं फेल हुईं। मई में पचास और जून में उनसठ दवाएं मानकों पर खरी नहीं उतरीं। जुलाई में साठ दवाओं में गुणवत्ता की कमी पाई गई। अगस्त में अड़तीस दवाएं फेल रहीं।
सितंबर में उनचास दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में असफल रहीं। अक्टूबर में यह संख्या छियासठ तक पहुंच गई। नवंबर में फिर से उनचास दवाओं में खामियां मिलीं। यह आंकड़े एक गंभीर समस्या की ओर इशारा करते हैं।
दवा नियंत्रक ने दी जनता को चेतावनी
प्रदेश के दवा नियंत्रक मनीष कपूर ने जनता से अपील की है। उन्होंने कहा कि फेल हुई दवाओं का इस्तेमाल न करें। इन दवाओं की सूची सीडीएससीओ की वेबसाइट पर उपलब्ध है। उन्होंने नागरिकों से इस सूची को देखने का आग्रह किया।
कपूर ने कहा कि नियमित निगरानी और जांच जारी है। दवा सुरक्षा सुनिश्चित करना उनकी प्राथमिकता है। उन्होंने दवा निर्माताओं से गुणवत्ता मानकों का कड़ाई से पालन करने को कहा। सभी हितधारकों को मिलकर काम करने की जरूरत है।
उद्योग संघ ने मांगी कड़ी कार्रवाई
हिमाचल ड्रग मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के प्रवक्ता संजय शर्मा ने स्पष्ट रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि लापरवाही बरतने वाले उद्योगों के लाइसेंस निलंबित किए जाने चाहिए। उत्पादन में कोताही बरतना गंभीर मामला है।
शर्मा ने कहा कि कुछ उद्योग नकली दवाएं भी बना रहे हैं। इसकी समय-समय पर जांच होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि परिवहन और भंडारण में भी लापरवाही हो सकती है। फिर भी निर्माता की मुख्य जिम्मेदारी बनी रहती है।
विशेषज्ञों ने उठाए निगरानी तंत्र पर सवाल
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि निगरानी तंत्र में कमी है। नियमित जांच के बावजूद खराब दवाएं बाजार तक पहुंच रही हैं। केवल ड्रग अलर्ट जारी करना पर्याप्त नहीं है। दोषी कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई जरूरी है।
उनका कहना है कि लाइसेंस निलंबन और भारी जुर्माने का प्रावधान लागू होना चाहिए। दवा प्राधिकरण की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। जनस्वास्थ्य से जुड़े इस मामले में कोई समझौता स्वीकार्य नहीं है। सख्त कदमों की तत्काल आवश्यकता है।
दवाओं में क्या खामियां पाई जा रही हैं
फेल हुई दवाओं में कई तरह की खामियां सामने आई हैं। कई दवाएं लेबल क्लेम में फेल हुईं। इसका मतलब है कि दवा पर लिखे दावे सही नहीं हैं। कंटेंट यूनिफार्मिटी का टेस्ट भी कई दवाओं में फेल रहा।
डिसाल्यूशन टेस्ट में भी कई नमूने पास नहीं हो पाए। इसका मतलब है कि दवा शरीर में ठीक से घुल नहीं पाएगी। अन्य आवश्यक मानकों का पालन भी कई कंपनियां नहीं कर पा रही हैं। इन खामियों का सीधा असर रोगी की सेहत पर पड़ता है।
भविष्य में सुधार के लिए क्या उपाय जरूरी हैं
विशेषज्ञों का मानना है कि निरीक्षण प्रक्रिया को और मजबूत करना होगा। आश्रित नमूना लेने की प्रक्रिया में सुधार करना होगा। दवा निर्माण की पूरी आपूर्ति श्रृंखला पर नजर रखनी होगी। तकनीकी निगरानी को बढ़ाना होगा।
उद्योगों को स्व-नियमन के लिए प्रोत्साहित करना होगा। गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली को अनिवार्य बनाना होगा। प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम चलाने होंगे। सिर्फ कानूनी कार्रवाई से समस्या का स्थायी समाधान नहीं होगा।
