शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

दवा कीमतें: फार्मा इनपुट्स पर MIP लागू होने से बढ़ सकती हैं दवाओं के दाम; आपको लगेगा बड़ा झटका

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Business News: देश में दवाओं की कीमतों में जल्द ही बढ़ोतरी हो सकती है। सरकार फार्मास्यूटिकल सेक्टर में उपयोग होने वाले कच्चे माल पर न्यूनतम आयात मूल्य लागू करने की तैयारी कर रही है। इस बदलाव का सीधा असर दवा निर्माता कंपनियों और आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। फार्मा इंडस्ट्री के मुताबिक कच्चे माल पर एमआईपी लागू होने से एपीआई की लागत बढ़ेगी।

जब निर्माण सामग्री महंगी होगी तो दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी तय है। कंपनियों का कहना है कि यह कदम घरेलू उत्पादकों की रक्षा के लिए जरूरी है। हालांकि इसका असर दवा निर्माताओं पर भारी पड़ेगा। छोटे और मझोले एमएसएमई इकाइयां विशेष रूप से प्रभावित होंगी।

प्रभावित होने वाले कच्चे माल

सरकार तीन महत्वपूर्ण कच्चे माल पर एमआईपी लागू करने पर विचार कर रही है। पेनिसिलिन-जी, 6-एपीए और एमोक्सिसिलिन इनमें शामिल हैं। ये सभी तत्व एंटीबायोटिक दवाएं बनाने में उपयोग होते हैं। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि इनकी कीमत बढ़ने से आम दवाइयां भी महंगी होंगी।

सितंबर में सरकार ने एटीएस-8 के आयात पर 30 सितंबर 2026 तक 111 डॉलर प्रति किलोग्राम का एमआईपी तय किया था। इसके बाद सल्फाडायजीन पर भी 1174 रुपये प्रति किलोग्राम का एमआईपी लागू किया गया। नई घोषणा से दवा उद्योग पर और दबाव बढ़ सकता है।

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एमएसएमई क्षेत्र पर प्रभाव

रिपोर्ट्स के अनुसार दस हजार से अधिक एमएसएमई इकाइयां इससे प्रभावित हो सकती हैं। करीब दो लाख नौकरियों के जाने का खतरा है। कई छोटी फैक्ट्रियां लागत बढ़ने के कारण बंद होने की कगार पर आ सकती हैं। छोटे उद्योगों के लिए महंगा कच्चा माल खरीदना मुश्किल हो जाएगा।

ये इकाइयां पहले से ही कई चुनौतियों का सामना कर रही हैं। बढ़ती लागत और प्रतिस्पर्धा के बीच उनके लिए व्यवसाय चलाना कठिन होता जा रहा है। नई नीति से उनकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। उद्योग संगठन सरकार से इस मामले पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं।

सरकार का दृष्टिकोण

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि एमआईपी लागू करना आत्मनिर्भर भारत की दिशा में जरूरी कदम है। भारत कच्चे माल के लिए काफी हद तक चीन पर निर्भर है। सरकार की सोच है कि एमआईपी से भारतीय कंपनियों को वैश्विक बाजार के मुकाबले टिकने का मौका मिलेगा। घरेलू उत्पादन बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता है।

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साल 2020 में सरकार ने उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना शुरू की थी। इसका उद्देश्य घरेलू उत्पादन बढ़ाना और विदेशी निर्भरता कम करना था। नई नीति इसी दिशा में एक और कदम मानी जा रही है। सरकार चाहती है कि देश में फार्मा उद्योग मजबूत हो।

उद्योग की चिंताएं

कुछ उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि पीएलआई योजना का मकसद कच्चे माल की कीमतें नियंत्रित करना नहीं था। अगर एमआईपी लागू हुआ तो यह संकेत जा सकता है कि पीएलआई लाभ लेने वाले निर्माता अतिरिक्त सुरक्षा चाहते हैं। इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा कम हो सकती है।

उद्योग के लिए एक संतुलित नीति की जरूरत है। ऐसी नीति जो घरेलू उत्पादकों को भी संरक्षण दे और उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ भी न डाले। विशेषज्ञ सरकार से उद्योग के सभी हितधारकों से विस्तृत चर्चा करने का आग्रह कर रहे हैं। इससे बेहतर नीति निर्माण में मदद मिलेगी।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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