Pune News: प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी और अबासाहेब गवारे कॉलेज की पूर्व प्रोफेसर डॉ. हिमा साने का 20 सितंबर 2025 को निधन हो गया। 85 वर्षीय डॉ. साने ने उम्र संबंधी समस्याओं के चलते अंतिम सांस ली। उन्होंने अपना पूरा जीवन बिना बिजली के बिताया और दुनिया को सादगी से जीने का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया।
डॉ. साने पुणे के बुढ़वार पेठ इलाके में तंबाडी जोगेश्वरी मंदिर के पास एक पुराने वाड़े में रहती थीं। उनके घर में रेफ्रिजरेटर, टीवी या कोई भी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नहीं था। आज के डिजिटल युग में जहां लोग बिजली पर निर्भर हैं, वहीं डॉ. साने ने बिना बिजली के जीवन जिया।
वह कहती थीं कि भोजन और आश्रय मनुष्य की मूलभूत जरूरतें हैं। बिजली तो बाद में आई है। उन्होंने इस सादगी भरे जीवन को अपनी आदत बना लिया था और इसे पसंद करती थीं। उनका मानना था कि इंसान को जरूरत से ज्यादा चीजों की आदत नहीं डालनी चाहिए।
डॉ. हिमा साने पुणे की मूल निवासी थीं। उन्होंने अपने करियर में वनस्पति विज्ञान के शिक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। अबासाहेब गवारे कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में उन्होंने लंबे समय तक सेवाएं दीं। इस दौरान उन्होंने 30 से अधिक पुस्तकें भी लिखीं।
उनके लेखन और शिक्षण कार्य ने कई छात्रों को प्रेरित किया। डॉ. साने ने अपना जीवन प्रकृति और जानवरों के बीच बिताया। वह स्वयं को अपने घर की मालिक नहीं, बल्कि एक देखभाल करने वाला मानती थीं।
उनका घर जानवरों और पक्षियों से भरा रहता था। कुत्ते, बिल्लियाँ, नेवले और पक्षी उनके घर का हिस्सा थे। डॉ. साने कहती थीं कि यह जगह तो इन जानवरों की है, वह सिर्फ इसकी देखभाल करती हैं। यह उनके प्रकृति प्रेम को दर्शाता है।
पर्यावरणविद् सुषमा दाते ने सोशल मीडिया पर डॉ. साने के बारे में भावुक पोस्ट लिखी। उन्होंने बताया कि कैसे डॉ. साने ने शहरी जीवन के बीच सादगी से जीवन जिया। दाते ने सुकरात की एक कहानी का जिक्र करते हुए अपनी भावनाएं व्यक्त की।
सुकरात एथेंस के बाजार में चीजों को देख रहे थे। एक छात्र ने पूछा कि वह क्या सोच रहे हैं। सुकरात ने जवाब दिया कि ऐसी कितनी सारी चीजें हैं जिनकी उन्हें जरूरत ही नहीं है। डॉ. साने का जीवन भी इसी दर्शन को प्रतिबिंबित करता था।
डॉ. साने का घर शहर के शोर-शराबे से दूर एक छोटा सा नखलिस्तान था। उनके पास एक टिन का शेड था जिसे वह अपने पालतू जानवरों के साथ साझा करती थीं। उन्हें कभी बिजली या पानी की कमी महसूस नहीं हुई।
उनके पास संचार का एकमात्र साधन एक साधारण फोन था। यह फोन एक छात्र ने उन्हें दिया था। डॉ. साने इसे सौर ऊर्जा की मदद से चार्ज करती थीं। यह उनके पर्यावरण के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
80 वर्ष की उम्र में भी डॉ. साने पढ़ने और लिखने में व्यस्त रहती थीं। सुषमा दाते के अनुसार, दो साल पहले मिलने पर वह अशोक के समय की भारतीय वनस्पतियों पर एक किताब लिख रही थीं। उनका ज्ञान और सीखने की ललक कमाल की थी।
डॉ. साने का जीवन टिकाऊ जीवन का एक जीवंत उदाहरण था। उन्होंने दिखाया कि बिना आधुनिक सुविधाओं के भी खुशहाल जीवन जिया जा सकता है। उनकी सरल जीवन दृष्टिकोण ने कई लोगों को प्रभावित किया।
उनका निधन समाज के लिए एक बड़ी क्षति है। डॉ. साने ने अपने जीवन से यह साबित किया कि इंसान को ज्यादा चीजों की जरूरत नहीं है। उनकी शिक्षाएं और दर्शन हमेशा लोगों को प्रेरित करते रहेंगे।
