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डॉ भीमराव अंबेडकर: महापरिनिर्वाण दिवस पर जानिए संविधान निर्माता के संघर्ष और संकल्प की कहानी

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New Delhi: भारत आज अपने संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर को याद कर रहा है। आज 6 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि है। इसे महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ भीमराव अंबेडकर ने समाज के वंचित वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ा। उन्होंने भारत को एक मजबूत और लिखित संविधान दिया। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी है। उनका जीवन करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। उनका जन्म मध्य प्रदेश के महू छावनी में हुआ। वे एक दलित परिवार से आते थे। बचपन में उन्हें काफी सामाजिक भेदभाव झेलना पड़ा। स्कूल में उन्हें बाकी बच्चों से अलग बैठाया जाता था। इन मुश्किलों के बाद भी उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी। डॉ भीमराव अंबेडकर ने विदेश जाकर उच्च शिक्षा हासिल की। उन्होंने अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। इसके बाद वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स गए। उन्होंने अर्थशास्त्र और कानून में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।

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संविधान निर्माण में अहम भूमिका

देश की आजादी के बाद डॉ भीमराव अंबेडकर को बड़ी जिम्मेदारी मिली। उन्हें संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने दुनिया के कई संविधानों का अध्ययन किया। उन्होंने भारत के लिए एक समावेशी संविधान तैयार किया। इसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए गए। डॉ भीमराव अंबेडकर ने महिलाओं और श्रमिकों के अधिकारों की भी वकालत की। उन्होंने छुआछूत जैसी कुरीतियों को गैरकानूनी घोषित करवाया। उनके प्रयासों से ही दलितों को आरक्षण और सम्मान मिला।

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बौद्ध धर्म और अंतिम समय

जीवन के अंतिम पड़ाव में उन्होंने एक ऐतिहासिक कदम उठाया। डॉ भीमराव अंबेडकर जाति व्यवस्था से काफी निराश थे। उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अपना लिया। यह दीक्षा समारोह नागपुर में आयोजित हुआ था। उनके साथ लाखों अनुयायियों ने भी बौद्ध धर्म स्वीकार किया। उनका मानना था कि इस धर्म में ही सच्ची समानता है। इसके कुछ समय बाद 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया। मरणोपरांत उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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