Himachal News: रामपुर बुशहर की अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि पत्नी घरेलू हिंसा के तथ्य साबित नहीं कर पाती है, तो वह भरण-पोषण राशि की हकदार नहीं होगी। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने यह टिप्पणी उच्च न्यायालय के एक पुराने आदेश का हवाला देते हुए की। इस मामले में पत्नी ने पति पर गंभीर आरोप लगाए थे। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि पत्नी अपनी मर्जी से अलग रह रही है और खुद भी कमा रही है।
पत्नी ने की थी मुआवजे और आवास की मांग
रामपुर क्षेत्र की एक महिला ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उसने अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत आवेदन दिया था।
- पत्नी ने पति से संरक्षण आदेश की मांग की थी।
- उसने भरण-पोषण भत्ता और रहने के लिए आवास भी मांगा।
- अधिनियम की धारा 22 के तहत मुआवजे की भी अपील की गई थी।
शिकायत में पत्नी ने कहा कि पति के पास पर्याप्त साधन हैं। इसके बावजूद वह उसे और बेटे को कुछ नहीं दे रहा है। उसने पति पर जानबूझकर उपेक्षा करने का आरोप लगाया। महिला ने भोजन, कपड़े और दवाइयां न देने की बात कही। साथ ही मारपीट और जान से मारने की धमकी का भी जिक्र किया।
पति ने कोर्ट में पेश किए पुख्ता सबूत
पति ने अदालत में इन सभी आरोपों का खंडन किया। उसने बताया कि वह एक पूर्व सैनिक है और कानून का सम्मान करता है। पति के अनुसार, शादी के दो साल बाद पत्नी का व्यवहार बदल गया था। एक दिन वह बिना बताए बेटे को लेकर घर से चली गई।
- पति ने बताया कि उसने पत्नी के नाम 4.50 लाख की एफडी करवाई है।
- उसने जीपीएफ ग्रेच्युटी और ग्रुप इंश्योरेंस भी पत्नी के नाम किया है।
- लीव एनकैशमेंट की सुविधा भी पत्नी को दी गई है।
पत्नी खुद कमाती है 15 हजार रुपये महीना
सुनवाई के दौरान कई अहम तथ्य सामने आए। पत्नी ने माना कि नौकरी के दौरान पति उसके खाते में पैसे भेजता था। उसने स्वीकार किया कि उनका एक जॉइंट अकाउंट है। पति की पेंशन इसी खाते में आती है।
अदालत को पता चला कि महिला पंचकूला में नौकरी कर रही है। वह महीने में 10 से 15 हजार रुपये कमाती है। वह साल 2020 से पति से अलग रह रही है। पत्नी ने फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका भी दायर कर रखी है। यह साबित करता है कि वह पति के साथ रहने को तैयार नहीं है।
सबूतों के अभाव में अर्जी खारिज
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आवेदक ने कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया। वह प्रतिवादी के खिलाफ घरेलू हिंसा के आरोपों की पुष्टि नहीं कर सकी। दूसरी ओर, प्रतिवादी पर बेटे और अन्य परिजनों की भी जिम्मेदारी है।
अदालत ने मनोहर सिंह बनाम द्रौपती देवी (2021) मामले में हिमाचल हाई कोर्ट की टिप्पणी का जिक्र किया। हाई कोर्ट ने कहा था कि यदि पत्नी घरेलू हिंसा साबित करने में विफल रहती है, तो वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है। कानून के तहत राहत तभी मिलती है जब शारीरिक, मानसिक या आर्थिक दुर्व्यवहार हुआ हो। इन तथ्यों को देखते हुए कोर्ट ने पत्नी का आवेदन खारिज कर दिया।
