New Delhi News: भारतीय अर्थव्यवस्था में बुधवार को एक ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली। 3 दिसंबर 2025 को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर गया। यह अब तक का सबसे निचला स्तर है। मुद्रा में आई इस गिरावट से न केवल विदेशी व्यापार बल्कि आम आदमी का बजट भी बिगड़ने वाला है। आर्थिक विशेषज्ञों ने इसे महंगाई बढ़ने का संकेत माना है।
महंगाई की नई लहर का खतरा
रुपये के कमजोर होने का सीधा असर आपकी रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ेगा। भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और खाद विदेशों से आयात करता है। डॉलर महंगा होने से इन सामानों के लिए अब ज्यादा कीमत चुकानी होगी। जब पेट्रोल-डीजल महंगा होता है, तो माल ढुलाई का खर्च बढ़ जाता है। इससे फल, सब्जियां और राशन का सामान महंगा हो जाएगा।
विदेश में पढ़ाई और घूमना हुआ महंगा
अगर आप विदेश में पढ़ाई या घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो आपको अपना बजट बढ़ाना होगा। एक्सचेंज रेट 90 रुपये होने से विदेशी फीस और खर्चों का बोझ बढ़ गया है। उदाहरण के लिए, 10,000 डॉलर की फीस के लिए पहले 8 लाख रुपये देने पड़ते थे। अब इसके लिए आपको 9 लाख रुपये खर्च करने होंगे। इससे छात्रों को ज्यादा एजुकेशन लोन लेने की जरूरत पड़ सकती है।
शेयर बाजार और विदेशी निवेश पर असर
मुद्रा की इस गिरावट ने शेयर बाजार को भी हिला दिया है। बुधवार को सेंसेक्स में 200 अंकों की गिरावट दर्ज की गई। विदेशी निवेशक अपना पैसा सुरक्षित जगहों पर ले जा सकते हैं। हालांकि, कमजोर रुपये से निर्यातकों को कुछ फायदा हो सकता है। भारतीय उत्पाद विदेशी बाजार में सस्ते हो जाएंगे, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है। लेकिन विदेशी कर्ज चुकाना सरकार और कंपनियों के लिए महंगा साबित होगा।
