Bilaspur News: हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पारस्परिक सहमति से तलाक के बाद रिश्ते सुधरने के दावे पर दुबारा साथ रहने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। फैमिली कोर्ट के निर्णय के खिलाफ दंपति की अपील को खारिज कर दिया गया। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून भावनाओं से नहीं, बल्कि तथ्यों और प्रक्रियाओं से चलता है।
जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की पीठ ने यह आदेश पारित किया। उन्होंने कहा कि तलाक पूरी तरह से सहमति से हुआ था। इसलिए अब अपील करने का कोई आधार नहीं बचता है। यह फैसला तलाक की अंतिमता पर जोर देता है।
मामला बिलासपुर के सिविल लाइन क्षेत्र की एक महिला और मोपका निवासी पति का है। शादी के कुछ समय बाद ही उनके रिश्ते में दरार आ गई। दोनों ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन दिया।
फैमिली कोर्ट ने 4 जनवरी 2025 को पारस्परिक सहमति से तलाक को मंजूरी दे दी। एक डिक्री पारित की गई। दोनों पक्षों ने 9 दिसंबर 2024 को ही छह महीने की कूलिंग पीरियड हटाने की मांग की थी। वे अगस्त 2022 से ही अलग रह रहे थे।
तलाक के बाद दोनों के बीच फिर से बातचीत शुरू हुई। उन्होंने तलाक लेने के दो महीने बाद मथुरा की यात्रा भी की। यह यात्रा 11 मार्च से 15 मार्च 2025 तक चली। दोनों ने ट्रेन के टिकट और होटल की बुकिंग साथ में कराई।
रिश्ते में सुधार देखकर दोनों ने दोबारा साथ रहने का फैसला किया। उन्होंने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की। अपील में तलाक की डिक्री को निरस्त करने की मांग की गई।
दंपति ने अपने दावों के समर्थन में सबूत भी पेश किए। उन्होंने अदालत के सामने साथ बिताए समय की कुछ तस्वीरें रखीं। इन तस्वीरों को उन्होंने रिश्ते के सुधरने का प्रमाण बताया।
हालांकि, हाईकोर्ट ने इन सबूतों को पर्याप्त नहीं माना। अदालत ने कहा कि तलाक की प्रक्रिया पूरी तरह से कानूनी थी। दोनों पक्षों ने स्वेच्छा से और पूरी सहमति से तलाक के लिए आवेदन दिया था। ऐसे में अब उस फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि कानूनी प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करना जरूरी है। भावनात्मक दावे कानूनी तथ्यों से ऊपर नहीं हो सकते। इस फैसले ने पारस्परिक सहमति से तलाक की अपरिवर्तनीय प्रकृति को रेखांकित किया है।
