Shimla News: जिला अदालत शिमला ने वाहन चालान के मामले में हिमांशु पंवर को बरी किया है। न्यायिक दंडाधिकारी मृदुला शर्मा ने पुलिस के अभियोग को खारिज कर दिया। अदालत ने पाया कि पुलिस हिमांशु पंवर के खिलाफ अभियोग साबित करने में नाकाम रही है।
पुलिस ने आरोप लगाया था कि हिमांशु ने गाड़ी चलाते हुए सीट बेल्ट नहीं पहनी हुई थी। एसआई प्रेम लाल ने बालूगंज के पास सीट बेल्ट न पहनने के कारण हिमांशु की गाड़ी का चालान किया था। आरोप लगाया गया था कि जब वह ट्रैफिक ड्यूटी पर तैनात था तो उसने कथित आरोपी को बिना सीट बेल्ट के गाड़ी चलाते देखा।
वहीं, हिमांशु ने अदालत के समक्ष बयान दिया कि उसने समरहिल सड़क पर गाड़ी खड़ी की हुई थी। वह गाड़ी से उतरकर अपने दोस्तों से बात कर रहा था। इसलिए खड़ी गाड़ी में सीट बेल्ट पहनने का सवाल नहीं उठता। उसने दलील दी कि उसने मोटर वाहन अधिनियम के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया है।
अदालत ने एसआई प्रेम लाल के बयान से पाया कि पुलिस आरोपी के खिलाफ अभियोग साबित करने में नाकाम रही है। चालान करने वाला पुलिस अधिकारी अदालत को यह बताने में असमर्थ रहा कि आरोपी बिना सीट बेल्ट पहने सड़क पर गाड़ी चला रहा था। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि आरोपी के खिलाफ अभियोग को साबित करने का दायित्व अभियोजन पक्ष का होता है।
यह है अभियोग साबित करने का नियम आपराधिक मामलों में अपराध को किसी भी उचित संदेह से परे साबित किया जाना चाहिए, जो सामान्य विवेक वाले एक उचित व्यक्ति के पास हो सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि आरोपी दोषी है या नहीं। अगर जरा सा भी संदेह है तो वह कितना ही छोटा क्यों न हो, लाभ आरोपी को ही मिलेगा।
भारतीय कानूनी प्रणाली में सबूत के बोझ और इसे कैसे हटाया जाना है, के बारे में प्रावधान साक्ष्य अधिनियम, 1872 के अध्याय सात में भव्यता से निर्धारित किए गए हैं। नियम यह है कि जो कोई भी तथ्य का आरोप लगाता है उसे इसे साबित करना होगा। एक आपराधिक मुकदमे में यह अभियोजन पक्ष है जो आरोप लगाता है कि अभियुक्त ने अपेक्षित मनोस्थिति के साथ अपराध किया है और इसलिए इसे साबित करने का भार अभियोजन पक्ष पर है।