शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

दिल्ली हाईकोर्ट: गैंगरेप दोषी को बहन के अंतिम संस्कार के लिए मिली चार सप्ताह की पैरोल

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Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट ने रविवार को एक विशेष सुनवाई में गैंगरेप दोषी तसलीम को चार सप्ताह की पैरोल प्रदान की। न्यायमूर्ति संजीव नारूला ने यह फैसला तसलीम की बहन के निधन के मद्देनजर सुनाया। अदालत को सूचना मिली थी कि तसलीम की बहन का रविवार सुबह निधन हो गया और शाम को उसका अंतिम संस्कार होना है।

यह सुनवाई रविवार के दिन हुई जबकि इस दिन कोर्ट की सरकारी छुट्टी होती है। आमतौर पर मजिस्ट्रेट कोर्ट में केवल एक जज ही रविवार को बैठता है जो इमरजेंसी मैटर की सुनवाई करता है। इस मामले में अदालत ने मानवीय आधार पर विशेष सुनवाई करने का निर्णय लिया।

बहन की बीमारी और निधन

तसलीम की 60 वर्षीय बहन पोस्ट-ट्यूबरकुलोसिस से उत्पन्न फेफड़ों की गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। वह लंबे समय से ऑक्सीजन थेरेपी पर थी और 6 नवंबर को उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया था। इससे पहले 7 नवंबर को अदालत ने तसलीम को उसकी बीमार बहन से अस्पताल में मिलने के लिए एक दिन की कस्टडी पैरोल दी थी।

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रविवार सुबह बहन के निधन के बाद तसलीम ने पैरोल का अनुरोध किया। उसने अदालत से कहा कि वह बहन के अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहता है और शोक की इस घड़ी में अपने परिवार के साथ रहना चाहता है। अदालत ने इस आधार पर उसके आवेदन को स्वीकार कर लिया।

अदालत ने जारी किए निर्देश

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता को चार सप्ताह की पैरोल दी जाती है। यह पैरोल उसकी रिहाई की तारीख से प्रभावी होगी। तसलीम को दस हजार रुपये का व्यक्तिगत बॉन्ड भरना होगा। पहले से जमा नकद जमानत को बरकरार रखा जाएगा। उसे जेल अधीक्षक के समक्ष संतोषजनक आश्वासन देना होगा।

अदालत ने जेल प्रशासन को निर्देश दिया कि पैरोल अवधि के दौरान तसलीम की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जाए। निर्धारित अवधि पूरी होते ही उसे वापस जेल में भेज दिया जाए। इससे सुनिश्चित होगा कि वह समय पर जेल लौट आए।

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1999 के गैंगरेप मामले में सजा

तसलीम को साल 1997 में एक महिला से गैंगरेप के मामले में दोषी ठहराया गया था। 1999 में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उसकी सजा को बाद में दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने बरकरार रखा था। वह वर्तमान में इसी मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है।

अदालत ने इस मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि कानून सख्त जरूर है लेकिन इसमें करुणा और संवेदना की भी जगह होनी चाहिए। किसी दोषी को उसके निकट परिजन के अंतिम संस्कार से वंचित करना न्यायसंगत नहीं होगा। खासकर तब जब जेल प्रशासन उसकी निगरानी सुनिश्चित कर सके।

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