शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

दिल्ली हाईकोर्ट: बुजुर्ग माता-पिता के शांतिपूर्ण जीवन का हक, बहू को स्व-अर्जित घर से बाहर निकालने के आदेश को मिली मंजूरी

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Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए बुजुर्ग माता-पिता के अधिकारों को मजबूती दी है। अदालत ने कहा कि बुजुर्गों को अपने घर में शांति और गरिमापूर्ण जीवन जीने का पूरा अधिकार है। यह फैसला एक ऐसे मामले में आया है जहां बहू को सास-ससुर के स्व-अर्जित घर से बाहर निकालने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी।

हाईकोर्ट ने बहू की अपील खारिज कर दी और ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा कानून के तहत बहू को रहने का अधिकार है लेकिन यह सिर्फ कब्जे का हक है। बुजुर्ग माता-पिता के शांतिपूर्ण जीवन के अधिकार को भी समान महत्व दिया जाना चाहिए।

अदालत ने दोनों पक्षों के अधिकारों में किया संतुलन

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में दोनों पक्षों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने पर जोर दिया। अदालत ने कहा कि कानून को इस तरह से काम करना चाहिए कि महिला की सुरक्षा भी बनी रहे और घर में शांति भी कायम रहे। यह टिप्पणी बुजुर्ग दंपति और उनकी बहू के बीच चले रहे विवाद के संदर्भ में आई।

जजों की पीठ ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा कानून के तहत बहू को मिलने वाला रहने का अधिकार सिर्फ कब्जे का हक देता है। यह अधिकार संपत्ति पर मालिकाना हक स्थापित नहीं करता। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि बुजुर्गों को जीवन के अंतिम वर्ष शांतिपूर्वक बिताने का अधिकार भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

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विवादित संपत्ति की प्रकृति

मामले में विवादित संपत्ति एक ही मकान थी जिसमें सीढ़ियां और रसोई साझा थे। अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में दोनों पक्षों का एक साथ रहना व्यावहारिक नहीं था। बुजुर्ग दंपति ने बहू के लिए वैकल्पिक आवास का प्रस्ताव दिया था जिसे अदालत ने उचित माना।

बुजुर्ग दंपति ने बहू के लिए 65,000 रुपये मासिक किराये का फ्लैट देने का प्रस्ताव रखा था। इसके अलावा मेंटेनेंस, बिजली-पानी के बिल और सिक्योरिटी डिपॉजिट का खर्च भी वहन करने की पेशकश की थी। अदालत ने इस प्रस्ताव को उचित और संतुलित माना।

अदालत ने दिए स्पष्ट निर्देश

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट निर्देश जारी किए। अदालत ने कहा कि बुजुर्ग दंपति को चार हफ्तों के भीतर बहू के लिए दो कमरों वाला फ्लैट ढूंढना होगा। यह फ्लैट उसी इलाके में होना चाहिए जहां मौजूदा घर स्थित है। इससे बहू को कम से कम असुविधा होगी।

फ्लैट मिलने के दो हफ्ते बाद बहू को विवादित घर खाली करना होगा। अदालत ने कहा कि इस तरह के मामलों में नाजुक संतुलन बनाना जरूरी होता है। किसी की गरिमा या सुरक्षा प्रभावित नहीं होनी चाहिए। यह फैसला domestic violence कानून और बुजुर्गों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करता है।

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कानूनी पहलुओं का विश्लेषण

यह मामला घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा कानून और बुजुर्गों के अधिकारों के बीच टकराव का उदाहरण है। अदालत ने स्पष्ट किया कि PWDV एक्ट महिलाओं को बेघर होने से बचाता है लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। बुजुर्ग माता-पिता को भी अपने ही घर में शांति से रहने का अधिकार है।

अदालत ने कहा कि जब दोनों पक्षों के अधिकार टकराते हैं तो न्यायालय को संतुलन स्थापित करना होता है। इस मामले में अदालत ने बुजुर्ग माता-पिता के शांतिपूर्ण जीवन के अधिकार को प्राथमिकता दी। साथ ही बहू के लिए वैकल्पिक आवास की उचित व्यवस्था भी सुनिश्चित की।

समाज के लिए महत्वपूर्ण संदेश

यह फैसला समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि परिवारिक विवादों में बुजुर्ग माता-पिता की शांति और गरिमा सर्वोपरि है। बच्चों का कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता को उनके जीवन के अंतिम वर्षों में शांति और सम्मान दें।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कानूनी अधिकारों का उपयोग संवेदनशीलता के साथ होना चाहिए। कोई भी कानून परिवार के सदस्यों के बीच संबंधों को और खराब करने के लिए नहीं बना है। यह फैसला भारतीय समाज में पारिवारिक मूल्यों और कानूनी अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करता है।

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