Delhi News: दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने के प्रयोग ने नई बहस छेड़ दी है। आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर चलाए गए इस प्रोजेक्ट पर करीब 34 करोड़ रुपये खर्च किए गए। लेकिन अक्टूबर में भरी गई दो उड़ानों से कोई खास नतीजा नहीं निकला। इससे पहले ही तीन विशेषज्ञ एजेंसियों ने सर्दियों में क्लाउड सीडिंग को असंभव बताया था।
विशेषज्ञों ने दी थी पहले चेतावनी
राज्यसभा में दिसंबर में दिए गए जवाब के मुताबिक तीन एजेंसियों ने स्पष्ट सलाह दी थी। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने इसकी संभावना नकारी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी इसे समर्थन नहीं दिया। भारत मौसम विज्ञान विभाग ने भी तकनीकी कारण बताए। विशेषज्ञों का कहना था कि दिल्ली में सर्दियों के बादल क्लाउड सीडिंग के लिए उपयुक्त नहीं होते।
बादलों की प्रकृति है मुख्य समस्या
दिल्ली में सर्दियों के बादल आमतौर पर बहुत ऊंचे होते हैं। उनमें नमी की मात्रा भी कम रहती है। पश्चिमी विक्षोभ से बने बादलों की परतें पतली होती हैं। बारिश की बूंदें जमीन तक पहुंचने से पहले ही वाष्पित हो जाती हैं। इन हालात में सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों का कोई खास फायदा नहीं होता।
प्रयोग के दौरान क्या हुआ
अक्टूबर महीने में दो उड़ानें भरी गईं। प्रत्येक उड़ान पर लगभग साठ लाख रुपये का खर्च आया। करीब तीन सौ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में क्लाउड सीडिंग की गई। वैज्ञानिकों के मुताबिक वातावरण में नमी की मात्रा मात्र दस से पंद्रह प्रतिशत थी। इस कारण कोई महत्वपूर्ण बारिश नहीं हो पाई। दिल्ली में कुछ मिलीमीटर हल्की बूंदाबांदी दर्ज की गई।
सरकार ने दिया क्या जवाब
दिल्ली सरकार ने इस मामले में कहा कि यह प्रोजेक्ट अभी प्रायोगिक चरण में है। पर्यावरण मंत्री ने कोई टिप्पणी करने से इनकार किया। मंत्री के कार्यालय ने बताया कि क्लाउड सीडिंग के कई प्रकार होते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि किस विशिष्ट प्रकार के लिए विशेषज्ञों की राय ली गई थी।
आईआईटी कानपुर कर रहा है आकलन
संस्थान वर्तमान में इस प्रोजेक्ट का तकनीकी मूल्यांकन कर रहा है। अधिकारियों के मुताबिक प्रोजेक्ट का भविष्य इसी रिपोर्ट पर निर्भर करेगा। आईआईटी के विशेषज्ञ अपना मूल्यांकन पूरा करने के बाद सरकार को निष्कर्ष पेश करेंगे। तब तय होगा कि इसे आगे जारी रखना है या नहीं।
पहले भी हो चुकी हैं नाकाम कोशिशें
यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का प्रयास किया गया। पिछली कोशिशें भी प्रदूषण के स्तर में कमी लाने में नाकाम रही थीं। इन प्रयोगों से बारिश की मात्रा में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं देखी गई। विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली की भौगोलिक परिस्थितियाँइस तकनीक के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
पर्यावरणीय जोखिमों पर सवाल
विशेषज्ञों ने सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों के पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर भी चिंता जताई है। इन रसायनों के दीर्घकालिक प्रभावों पर अभी और शोध की आवश्यकता है। कुछ अध्ययन में इनके पारिस्थितिक जोखिम की संभावना जताई गई है। इसलिए इस तकनीक के इस्तेमाल से पहले व्यापक मूल्यांकन जरूरी है।
